Tuesday, August 30, 2016

बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी


                     भारत की पावन वसुंधरा पर समय-समय पर कारक महापुरषो का अवतार हुआ | जिनमे से एक अलौकिक महापुरुष श्री सतगुरु कबीर साहिब जी हुये | सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज अपने निज लोक से अपने हंसो के उद्धार के लिए हर युग में यंहा अवतार लेते हैं | सन १७१७ में आचार्य गरीब दास जी महाराज का प्राकटय भी अद्वितीय है | जो हम सब जीवो के उदहार के
लिए, विकारो से छुटाने के लिए पूज्य पाद प्रात: स्मरणीय सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज के अवतार के रूप में छुड़ानी धाम को पवित्र किया | आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व हमारे कल्याणार्थ अवतरित हुए | भूले हुए मनुष्य को बोध कराने के लिए सरल भाषा में अनुभव वाणी की रचना की और सदुपदेश देकर अनेकों अज्ञानी जीवों को सदमार्ग पर लगाया | असंख्य भटके हुए जीवो का कल्याण कर सन १७७८ में निर्वाण गति को प्राप्त हुए और अपने निज लोक को चले गये |

गरीब, मासा घटे न तिल बधे, बिधना लिखे जो लेख | साचा सतगुरु मेटि कर, ऊपर मारे मेख ||
गरीब दास जी महाराज महान संत, महान योगी, महान कवी हुए | आचार्य गरीब दास जी महाराज ने न सिर्फ ऊँच-नीच के बन्धनों को तोडा बल्कि साथ-साथ हिन्दू-मुश्लिमो में हो रहे झगड़ो को भी समाप्त किया और दोनों को समझाया कि “वह दोनों एक ही परम पिता की संताने हैं”| आचार्य गरीब दास जी महाराज ने इस भवसागर रुपी संसार में फंसे लोगो के लिए एक ऐसी नाव तयार की जिसके लाभ से कलयुगी जीव इस भवसागर से पार पा सके जो हमारे समक्ष आप जी का ही स्वरूप पावन-पवित्र कल्याणकारी अमृतमई वाणीश्री ग्रन्थ साहिब जी के रूप में हैं जो की आचार्य गरीब दास जी महाराज की इस संसार को सबसे बड़ी देन हैं | आपने अपनी पवित्र वाणी में २४००० दोहों कि रचना की हैं | आचार्य गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में भिन्न-भिन्न भाषाओं का प्रयोग किया हैं इतनी ज्यादा भाषाओं का प्रयोग शायद ही किसी सन्त ने अपनी वाणी में किया होगा | जंहा तक आचार्य गरीब दास जी महाराज की वाणी की आवाज जाती हैं उस स्थान के वातावरण के कण-कण में शुद्धी आ जाती हैं| पवित्र वाणी को पढ-सुनकर, विचारकर ना जाने कितने ही जीवों का उद्धार हो चूका है और आगे भी होता रहेगा |
गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में अनेक साखियाँ कही हैं, राग कहे हैं, छंद कहे हैं, रमैनियाँ कही हैं, पद कहे हैं | गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में “झूलने” नामक शीर्षक में फरमाया हैं कि:

सुन खाक के पुतले बात भईया, पलक मारते खाक होय जाहिगा रे |
भूले हुए मनुष्य को बोध कराने के लिए सरल भाषा में अनुभव वाणी की रचना की और सदुपदेश देकर अनेकों अज्ञानी जीवों को सदमार्ग पर लगाया | असंख्य भटके हुए जीवो का कल्याण कर सन १७७८ में निर्वाण गति को प्राप्त हुए और अपने निज लोक को चले गये |

हम जीव गरीब दास जी महाराज को सतगुरु मानते हैं पर गरीब दास जी महाराज अपने भक्तो को भाई कह कर पुकारते हैं और यँहा गरीब दास जी महाराज संदेश दे रहे हैं कि “मानुष जन्म उतम तो है, यह शरीर जीवो में सर्वोतम तो हैं, पर संभंगुर हैं | यह मानुष जीवन हमे ८४ लाख योनियों के चक्कर काटने के बाद मिला हैं, हमे इसे व्यर्थ नही गवाना चहिये | हमे उस परम-पिता परमात्मा की भक्ति में लीन रहना चहिये | कलयुगी जीव अपना बहुमूल्य समय योजनाएँ बनाने में लगा रहता हैं और समय हाथ से निकल जाता हैं | कोई सुख का पल नहीं मिलता” | गरीब दास जी महाराज अपनी वाणी में फरमाते हैं कि:
साधो की संगत नही, नही साहिब का जाप | कहैं गरीब कैसे बचे, जिनसे तीनूं ताप ||

जन्म

श्री छुड़ानी धाम गरीब दास जी महाराज का ननिहाल हैं | गरीब दास जी महाराज के नाना श्री शिवलाल जी को संतान के रूप में कन्या ही प्राप्त थी उनका कोई पुत्र नही था | शिवलाल जी ने अपनी सुपुत्री रानी जी का विवाह छुड़ानी धाम से १६ मिले दूर करोंथा गाँव के श्री बलराम सुपुत्र श्री हरदेव जी के साथ सम्पन हुआ | शिव लाल जी की छुड़ानी धाम में अपार सम्पति थी तो शिवलाल जी का कोई पुत्र न होने के कारण उन्होंने श्री बलराम जी को घर जमाई बना लिया और अपनी अपार सम्पति खेत खलियान की जिमेदारी बलराम जी को सोप दी | बलराम जी व रानी जी छुड़ानी धाम में रहने लगे |

समय बीतता गया और विवाह के 12 वर्षो पश्चात बलराम जी के घर कोई बच्चा नही हुआ | इस बात से घर में थोडी चिंता का माहोल था कि तभी एक दिन एक सिद्ध योगी छुड़ानी धाम में आया | योगी ने छुड़ानी धाम के बाहर तालाब के पास एक कुटिया लगाई | योगी के बारे में जानकर शिवलाल जी बलराम जी को साथ ले कर योगी के पास गये और वँहा जाकर शिवलाल जी ने अपनी चिंता का कारण योगी को बताया | तब उस महान योगी ने कहा कि “शिवलाल जी आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हो| आपकी कन्या व दामाद कोई साधारण इंसान नही हैं | यह दोनों पिछले जन्म में महान तपस्वी थे और इनकी उसी घोर तपश्या के फल स्वरूप इनके घर एक सच्ची पावन-पवित्र आत्मा का जन्म होगा और वह परम-पिता परमात्मा साक्षात् कबीर साहिब जी का अवतार होगा” |

योगी से ऐसी बाते सुनकर शिवलाल जी व बलराम जी खुशी-खुशी अपने घर आ गये | इस घटना के १० महीने पश्चात विक्रमी संमत १७७४ (ई. सन १७१७) की वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को, मंगलवार के शुभ दिन, सूर्योदय से दो महूर्त पहले, अभिजीत नक्षत्र में, क्षत्रिय कुल में, जाट जाती के धनखड गोत्र में पिता श्री बलराम जी के घर सुभागी माता श्रीमती राणी जी की पावन-पवित्र कोख से आचार्य गरीब दास जी महाराज का जन्म हरियाणा प्रान्त के जिला झज्जर, तहसील बहादुरगढ के गाँव छुड़ानी धाम में हुआ |

सम्मत सतरह सो चोहत्रा, ग्रीष्म ऋतू बैसाख | उतम तिथि पूनम सही, पाप दियो हैं नाख ||

नामकरण संस्कार

इतने वर्षो के इंतजार के बाद घर में जन्मे बच्चे को लेकर बलराम जी व माता रानी जी बहुत खुश थे | उन्होंने हिन्दू रीति-रिवाज़ के साथ महाराज जी का नाम करण संस्कार कराया और तब महाराज जी का नाम “गरीब दास” रखा गया | बचपन में सभी ग्रामवासी व परिवार वाले महराज जी को प्यार से गरीबा कह कर पुकारते थे| “गरीब दास” शब्द का अर्थ हैं :

“ग“ अक्षर का ज्ञान स्वरूप हैं |

“र” अक्षर का अर्थ सबमे रमा हुआ |

“ब” अक्षर का अर्थ सम्पूर्ण सृष्टी का स्वरूप हैं |

कका करता जगत के, बबा वेता जान | ररा रमता सकल में, सो कबीर पहचान ||
गगा ज्ञान स्वरूप है, ररा कर सब ठाम | बबा व्यापक सकल में, गरीब दास यह नाम ||

बचपन
गरीब दास जी महाराज बचपन से ही हमेशा तुरिया अवस्था में लीं रहते थे | जिस उम्र में बच्चे खेल-कूद में मग्न रहते हैं उस समय गरीब दास जी महाराज परम-पिता परमात्मा की भक्ति में लीन रहते थे | बचपन में आपके उपदेश को सुन कर बड़े-बड़े लोग हैरान रह जाते थे | गरीब दास जी महाराज ने बचपन में किसी तरह की सांसारिक शिक्षा ग्रहण नही की वह सुबह से श्याम अपने मित्रो के साथ गाये चराने जाते थे | वँहा भी गायों को छोड़ कर एकांत में पेड़ के निचे आप ध्यान लगा कर बैठ जाते थे | बिना शिक्षा के भी इतनी सुरीली मन-मोहक वाणी की रचना आपने की जिसको एक बार कोई सुनता है तो उससे दूर नही हो पता जिसमे आपने हर भाषा का समावेश किया है | बचपन से ही आपने अपनी आलोकिक लिलाये दिखानी शुरू कर दी थी जिनमे से कुछ इस प्रकार है :

•              महाराज जी द्वारा श्री छुड़ानी धाम में वैरागियों के घर अग्नि बुझाना |

•              गरीब दास जी महाराज द्वारा छुडानी धाम में मीठा पानी बताना |

•              अपनी गायों द्वारा उजड़े हुए खेत को फिर हर भरा करना |

•              अपनी मोसी के घर खेडा नगर में एक वर्द्ध महात्मा बोदी दास जी से ज्ञान गोष्ठी कर उनके द्वारा पूछे गये प्रश्नों का सहज भाव से उत्तर देकर उन्हें अध्यात्मिक तृप्ति दी |

•              अपने मित्र मलूका के हाथ में घाव को एक प्रकाशमई तारा बना देना |

गुरु दीक्षा
अनंता-अनन्त अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत सत्पुरुष सतगुरु कबीर दास जी महाराज ने आचार्य श्री.श्री.१००८ गरीब दास जी महाराज के रूप में श्री छुड़ानी धाम जिला झज्जर तहसील बहादुरगढ़ हरियाणा में अवतार लिया | जब आचार्य गरीब दास जी महाराज १० वर्ष की आयु के थे तब उनको परमपिता परमेश्वर सत्पुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज ने दर्शन दिए थे और उसी दिन के उपलक्ष में यह दिवस किरपा पर्व के नाम से मनाया जाने लगा | बात वि०सं० १७८४ फाल्गुन शु० दवाद्शी की है जब रोजाना की तरह आचार्य गरीब दास जी महाराज गायें चराने खेतो में गए हुए थे | तब वह गायो को अपने और साथियों को सोप कर ध्यान लगा कर एकांत में बैठ गए | कुछ समय बीत जाने पर आचार्य गरीब दास जी के साथी बालक महाराज जी के पास आये | तभी वँहा असंख्यो सूर्यो का प्रकाश आसमान में दिखाई देने लगा जिसको देखकर सब बालक चकित रह गए और सोचने लगे की शायद आज सूर्य देवता धरती पर आ रहे है पर उस प्रकाश में बड़ी ही शीतलता थी |

तभी एक देवमूर्ति आकाश से पृथ्वी पर आती हुई दिखाई दी ठीक उसी जगह जंहा आचार्य गरीब दास जी महाराज समाधि लगा कर बैठे हुए थे | कुछ बालक कबीर दास जी महाराज को देख कर घबरा गए की पता नहीं कोन आ गया | तभी बालको ने आचार्य गरीब दास जी महाराज को उठाया और कहा कि “गरीबा देखो कोन आ आया है" तभी आचार्य गरीब दास जी महाराज ने देखा कि कबीर साहिब जी उनके सामने खड़े है | तभी आचार्य गरीब दास जी महाराज ने कबीर दास जी महाराज जी के चरणों में दण्डवत प्रणाम किया | तब आचार्य गरीब दास जी महाराज ने प्रार्थना कि “महाराज यदि आप आदेश दे तो मै आपके लिए भोजन ले आऊ” | तब कबीर दास जी महाराज ने कहा कि हम भोजन तो नहीं करेंगे पर दूध जरुर पियेंगे | तब आचार्य गरीब दास जी महाराज ने कहा की “महाराज जी आपकी की किरपा से बहुत गांये है उनको आपके पास ले आता हूँ फिर आपको जितना दूध पीना हो पी सकते हो”| तब कबीर दास जी महाराज ने कहा कि “हम तो बिन बियाई गाय (बछिया) का दूध पियेंगे” |

तभी आचार्य गरीब दास जी महाराज ने कई बछिया लाकर कबीर दास जी महाराज के सामने खड़ी कर दी और कहा जी महाराज जी जिस बछिया के उप्पर आप हाथ रखोगे उसी का हम दूध आपको पिलायेंगे | तभी कबीर दास जी महाराज ने एक बछिया पर हाथ जो की आचार्य गरीब दास जी महाराज को सबसे प्रिय थी | आचार्य गरीब दास जी महाराज ने बछिया के नीचे बर्तन रखा और फिर उसकी पीठ पर हाथ फेरा जिससे आपने आप ही उस बछिया के सतनो से दूध की धाराये बहने लगी और बर्तन भर गया | तब आचार्य गरीब दास जी महाराज ने वह दूध कबीर दास जी महाराज को दिया तो कबीर साहब ने वह दूध आधा पी कर आचार्य गरीब दास जी महाराज को दे दिया और कहा कि ”गरीबा अब तुम इसे पियो” | उस समय कबीर साहब ने मर्यादा पालन के लिए आचार्य गरीब दास जी महाराज को उपदेश व दीक्षा दी और तभी वँहा से अंतर्ध्यान हो गए | और उधर आचार्य गरीब दास जी महाराज समाधी में लीन हो गए क्युकि कबीर दास जी महाराज गरीब दास जी महाराज की आत्मा को निकाल कर अपने साथ सतलोक की यात्रा पर ले गए थे | और यँहा प्रथ्वी पर सिर्फ गरीब दास जी महाराज का शारीर था जो उन्होंने इस संसार की मर्यादा के लिए धारण किया हुआ था | इस यात्रा का वर्णन महाराज जी अपनी वाणी में करते हुए कहते है कि:

गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, प्रेम प्याले खूब | जहाँ हम सद्गुरु ले गया, मतवाला महबूब ||
(अर्थात महाराज जी कहते है कि “उस सतलोक के बाजार के अंदर प्रेम के भरे हुए प्याले बहुत से हैं| जो उनको पीते हैं, वे मतवाले होकर उस परमेश्वर के प्यारे हो जाते हैं| अर्थात सद्गुरु ने हमें वहाँ लेजा कर अपने जैसा बना लिया अर्थात सद्गुरु ने अपने में लीन कर लिया एवं मोक्ष पद को प्राप्त हो गए| प्रेम रुपी अमृत का प्याला पेट भर पिलाया और मस्त करके उस परम प्यारे ब्रम्ह में लीन कर दिया”)|

तब पृथ्वी के वासियों को लगा कि उनके प्राणों की गति बिलकुल रुक गयी हैं यह देख कर बालक बहुत घबरा गए और महाराज जी के घर आकर उनकी माता से कहने लगे कि “भुआ गरीबा मर गया एक दाढ़ी वाला बाबा आया था उसका झूठा दूध गरीबा ने पी लिया और वह मर गया”|यह सुनकर आचार्य गरीब दास जी महाराज के माता-पिता मुर्छित हो गए और सभी ग्राम वाले भी आचार्य गरीब दास जी महाराज से बहुत प्यार करते थे तो उनको भी बहुत बुरा लगा और सारे छुड़ानी धाम में शोक की लहर दोड़ गई | सभी ग्रामवासी व माता-पिता उस स्थान पर पहुंचे जंहा आचार्य गरीब दास जी महाराज अचेत अवस्था में पड़े हुए थे | उस समय शोक मानो अपने दीर्घ समुदाय सहित उसी स्थान पर आ प्रकट हुआ था | तभी ग्राम के बड़े बुजर्गो ने आचार्य गरीब दास जी महाराज के माता-पिता को धर्य बंधाया और आचार्य गरीब दास जी महाराज के अंतिम संस्कार की तयारी करने लगे और महाराज जी को श्मशान भूमि पर ले गए और भूमि पर रख दिया |

इस अघटित घटना से सभी को आघात पहुंचा था | तभी आचार्य गरीब दास जी महाराज के पैर का अंगूठा हिलता दिखाई दिया और साथ ही उनके मुख से “बंदी छोड़ व सत साहिब” शब्द निकले | यह घटना देख कर सब के अंदर एक ख़ुशी की लहर उठ गयी | तभी गरीब दास जी महाराज के बंधन खोल दिए गए | बंधन खुलते ही आप उठ बैठे | माता-पिता ने आचार्य गरीब दास जी महाराज जी को सीने से लगा लिया और माता-पिता ने कहा “बेटा यह तूने क्या किया हमे इतना दुःख क्यों दिया” | तब आचार्य गरीब दास जी महाराज ने आश्चर्य से कहा कि “आप मुझे शमशान में ले आये मुझे मरा हुआ समझा !! मै तो सोया हुआ था” | यह सुनकर पिता जी ने कहा कि ”बेटा ऐसा सोना कैसा तेरी तो नाड़ी तक बंद हो गयी थी” | तब वँहा परस्पर बाते होती रही फिर सभी लोग गरीब दास जी महाराज के साथ घर वापिस आ गए | इस प्रकार एक बार फिर से प्रशन्ता की लहर ने छुड़ानी धाम पर कब्ज़ा कर लिया |

इस दिन के बाद बन्दीछोड़ गरीबदास जी हमेशा वाणी का उच्चारण करते रहते थे माता पिता को लगा की बच्चे के दिमाग पर कोई असर हो गया है गरीब दास जी की बातें लोगों को समझ नहीं आ रही थी एक दिन एक विद्वान पंडित को दिखाया, पंडित ने जब गरीब दास जी के मुख से वाणी सुनि तो वह समझ गया की यह कोई साधारण बालक नहीं बल्कि कोई महान अवतारी पुरुष हैं उसने लोगों को बताया की यह बालक जिस वाणी का उच्चारण कर रहा है, वह वेदों का सार है यह बालक महापुरुष है| महाराज जी ने अपनी वाणी से अनेको जीवों को इस भवसागर से पार कराया |

विवाह, संतान व ग्रहस्थ जीवन
जब आचार्य गरीब दास जी महाराज की विवाह की उम्र हुई | तब पिता जी श्री बलराम जी व माता रानी जी ने एक सुयोग्य कन्या मोहिनी देवी सुपुत्री श्री नादर सिंह दहिया गाँव बरोना के साथ कर दिया | बरोना गाँव श्री छुड़ानी धाम से ३० मील कि दुरी पर रोहतक-सोनीपत वाली सड़क पर है | बिलकुल ठीक श्री पूज्य पाद प्रात: स्मरणीय सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज की तरह गरीब दास जी महाराज का ग्रहस्थ जीवन भी बड़ा ही खुशहाल था | महाराज जी के ग्रहस्थ जीवन ने कभी उनके धार्मिक जीवन में कभी अड़चन नही दी | गरीब दास जी महाराज को 4 पुत्र व 2 पुत्रियाँ प्राप्त हुई |

पुत्र - पहले जैतराम जी, दुसरे तुरतीराम जी, तीसरे अंगदराय जी, चोथे आसाराम जी

पुत्रियाँ - दिलकोर जी व ज्ञानकोर जी

जैतराम जी व तुरती राम जी दोनों जुड़वाँ हुए थे, जैतराम जी पहले होने के कारण उनको श्रेष्ठ माना गया है|जैतराम जी पहले गृहस्थ रहे और पुत्र होने के पश्चात सन्यास लेकर नागा साधुओं की तरह जीवन व्यतीत करने लगे|जैतराम जी ने जलंधर में अपना शरीर त्याग दिया था |

श्री तुरती राम जी को गरीब दास जी महाराज का उतराधिकारी बनाया गया जो महाराज जी के बाद ४० वर्षो तक गददी पर आसीन रहे और फिर सन १८१७ में शरीर त्याग दिया | वर्तमान में आंठवे गुरु-गद्दी नसीन श्रीमहंत दयासागर जी महाराज है | गरीब दास जी महाराज जी दोनों पुत्रियों ने पूरा जीवन ब्रह्मचर्यमय जीते हुए उस परम-पिता की भक्ति में लगा दिया |

श्री ग्रन्थ साहिब की रचना
जनता को सत्य, अहिंसा, एकता, विश्वबन्धुत्व का सद्गुरु जी ने उपदेश दिया | सद्गुरु जी की वाणी में प्रेम व मधुरता का ऐसा आकर्षण था की दूर-दूर से लोग उनके मधुर वचनों को सुनने के लिये आने लगे| उस प्रेममय वाणी से जनता प्रभावित होने लगी | आचार्य गरीब दास जी महाराज जन कल्याण के लिए अपने अनमोल रत्न अपने शिष्यों को सदुउपदेश के रूप में देकर उनको कल्याण कर रहे थे | इस समय महाराज जी की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी | आप जी की वाणी इतनी रसीली थी की जो उसको एक बार महाराज जी के मुख से सुन लेता था वह उस मनुष्य के कंठ से कभी नही उतरती थी | एक बार महाराज जी के बारे में सुनकर दादुजी सम्प्रदाय के महात्मा श्री गोपाल दास जी छुड़ानी धाम में महाराज जी के दर्शन करने के लिए आये | और दर्शनों के बाद गोपाल दास जी ने निश्चय किया कि कुछ समय और छुड़ानी धाम में महाराज जी के सानिध्य में रहा जाये | आप जी के मुख से वाणी सुनकर गोपाल दास जी समझ गये कि “आप कोई साधारण इंशान नही है आप जी के मुख से अनमोल वचनों की धरा बह रही थी” |

गोपाल दास जी ने महाराज जी से प्रार्थना कि “हे महाराज जी आपकी वाणी अमूल्य रत्नों के समान है इससे अनेकों जीवो का कल्याण हो सकता है अगर आप अनुमति दे तो मै इसे लिखना चाहता हूँ ताकि आगे आने वाली पीढियां भी आपकी वाणी का लाभ उठा कर इस भवसागर के पार पा जाये”|

आप जी ने इस बात के लिए गोपाल दास जी को अनुमति दे दी | आप जी कही भी अपने शिष्यों को सदउपदेश देना शरू कर देते थे तो गोपाल दास जी ने आप से प्रार्थना कि “महाराज जी आप एक समय और स्थान निश्चित कीजिये जंहा आप प्रतिदिन उपदेश दे जिसको मै सरलता से लिख सकू” | तब महाराज जी ने वाणी लिखने के लिए छुड़ानी धाम के बाहर बाग़ में जंड के पेड़ के निचे वाले स्थान को निश्चित किया | आचार्य गरीब दास जी महाराज की असीम अनुकम्पा से विक्रमी संवत १७९७ फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी को गोपाल दास जी द्वारा वाणी लिखना शुरू किया गया | अब यह पेड़ नष्ट हो चूका है इस स्थान को अब “श्री जंड साहिब मंदिर” के नाम से जाना जाता है| वर्तमान में छुड़ानी धाम के आंठवे पन्थ हजूर श्री महंत दयासागर जी महाराज ने माताश्री ओमवती जी की आज्ञा से “जंड साहिब मंदिर” का निर्माण कराया | जंहा अब २४ घंटे महाराज जी की वाणी का अखंड पाठ चलता रहता है|
श्री ग्रन्थ साहिब को 4 भागो में बांटा गया है:
१.         अंग भाग    २.   ग्रन्थ भाग   ३.  पद भाग    ४.    राग भाग
आचार्य गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में भिन्न-भिन्न भाषाओं का प्रयोग किया हैं | आचार्य गरीब दास जी महाराज की वाणी बहुत ही रस भरी और सरल है जो भी इसे सुनता है | वह अपने आप को इसके प्रति समर्पित होने से रोक नहीं पाता | महाराज जी ने वाणी में हर तरह की भाषा का प्रयोग किया है | वाणी में हरयाणवी, पंजाबी, मारवाड़ी, बिहारी, उर्दू, फारसी, अरबी, आदि अनेकों प्रान्तों कि भाषाओ का प्रयोग किया है |

निर्वाण दिवस
६१ वर्षो तक गरीब दास जी महाराज ने मानवता के लिए अदभुत कार्य किया असंख्य भटके हुए जीवो को सत के मार्ग पर चलाया | ६१ वर्षो के पश्चात गरीब दास जी महाराज ने निर्णय किया कि “अब इस नाश्वर शरीर को त्याग कर अपने नीज लोक सतलोक को वापिस जाना चहिये” | आप जी ने फाल्गुन की द्वादशी १८३५ की तिथि चुनी | जब यह बात महाराज जी के भक्तो को पता चली उन सभी में शोक की लहर दोड़ गई | पुरे छुड़ानी धाम में उदासी छा गयी | तब सभी शिष्यों ने महाराज जी से प्रार्थना कि “महराज जी अभी आप यँहा से न जाये अभी हमे आप के मार्ग दर्शन की बहुत जरुँत है” | तब महाराज जी ने उत्तर दिया कि:

जैसे कटे ओस है, ऐसा योह संसार | धुप खिले पावे नही, गरीबदास परिवार ||

महाराज जी कहते है कि “जैसे ओस की बूंद है जो धुप खिलने पर चमकती है और थोड़ी देर बाद वो बूंद गायब हो जाती है वैसे ही यो संसार है जो कभी एक समान नही रहता जैसे पवन का झोखा है आता है और दूसरी ही पल चला जाता है” | महाराज जी अपनी वाणी में भी फरमाते है:

जो जन्मया सो आया मरण को, जो चिन्या सो दहना रे ||

यह तो प्रकर्ति का नियम है इसको कोई नही बदल सकता हमने तुम्हे अपने उपदेशो से सर्वगुण संपन बना दिया है और हमारे इसी उपदेश को मत भूलना यही तुम्हारा कल्याण करेगा | पर भक्तो की बार बार विनती करने पर महाराज जी ने कहा कि “ठीक है हम अभी नही जा रहे तुम सभी बताओ कितना और समय तुम लोग हमारा दर्शन चहाते हो”| सभी भक्त खुशी से झूम उठे और तब खुशी में भक्तो ने यह कह दिया कि “महाराज जी हम लोग 6 महीने और आपके दर्शन चहाते है” | समय के चक्र को तो चलना ही था निश्चित हुआ समय वि. सं . १८३५ भाद्रपद शुक्ल द्वितीय का दिन आ गया और फिर से शोक की लहर दोड़ गई और वि. सं . १८३५ भाद्रपद शुक्ल द्वितीय को आपने अपना तेजपुंज का शरीर त्याग कर अपने निज लोक सतलोक को चले गये | बाद में हिन्दू रीती-रिवाज के अनुशार आपका अंतिम-संस्कार किया गया | बाद में जब आपकी चिता की राख में से अस्थियां निकालने लगे तो उनमे एक भी अस्थि नही मिली क्युकी आपका शरीर तो तेजपुंज का था न की पंच भोतिक | आप जी की याद में आज छुड़ानी धाम में एक भव्य मन्दिर “श्री छतरी साहिब मंदिर” बना हुआ है | जंहा वर्ष में ३ बार भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है |

१.            वैसाख शु० त्रयोदशी से पूर्णिमा तक : यह महाराज जी के अवतार दिवस की याद में (अवतार दिवस)

२.            भादो अमावश्या से शु० दिवितीया तक : महाराज जी के सतलोक गमन के याद में (निर्वाण दिवस)

३.            फागुन शु० दशमी से द्वादशी तक : सत्पुरुष सतगुरु कबीर साहिब जी के श्री छुड़ानी धाम में प्रकट दिवस के रूप में |

शिष्य परम्परा
आचार्य गरीब दास जी महाराज से २ धाराएं प्रचलित है :

•              बिन्दी

•              नाद

श्री जैतराम जी व श्री तुरती राम जी आचार्य गरीब दास जी की प्रणाली के दो स्फुलिंग ‘नाद’ और ‘बिन्दी’ प्रशाखाओं के अग्रणी प्रमाणित हुए | जैतराम जी सन्यास ग्रहण कर, अपनी योग्यता व साधना सिद्धि के आधार पर, ‘नाद’ प्रणाली के प्रमुख शिष्य और एक धुरधामी संत के रूप में स्थापित हुए | श्री तुरती राम जी श्री छुड़ानी धाम की गुरु-गद्दी के उतराधिकारी बन कर ‘बिन्दी’ प्रणाली के अग्रज शिष्य के रूप में ख्याति को प्राप्त हुए |

बिंदी धारा के अंतर्गत आचार्य गरीब दास जी महाराज जी के वंश से ही उतराधिकारी चुना जाता है | जो भी उतराधिकारी महाराज जी की गद्धी पर आसीन होता है उसे “श्री महंत” जी के नाम से जाना जाता है | वर्तमान में आंठवे श्री महंत दयासागर जी महाराज गद्दी पर आसीन है |

आचार्य गरीब दास जी महाराज की शिष्य परम्परा में स्वामी जैतराम जी, स्वामी संतोष दास जी, स्वामी बनखण्डी दास जी, स्वामी ब्रह्मानन्द जी (लाहोर वाले), स्वामी ब्रह्म सागर जी भुरीवाले सहित अनेकों त्यागमूर्ति, तपोमूर्ति, विरक्त परोपकारी महापुरुष हुए | वर्तमान समय में लगभग ४०० गरीबदासीय धर्म संस्थाऐ पूरे विश्व में जनहितार्थ कार्य कर रहीं है |




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