मूल मंत्र अर्थात् सार तत्व को अनुभव करने का मंत्र रूपी वाणी प्रारम्भ होती है।
निरंजन निरंजन निराकार भज रे, ताता न सीरा राता न पीरा।
धरौ ध्यान धीरा, रह्मा आप थिर रे ।।1।।
यह सत्गुरू गरीब दास साहिब जी की वाणी है। निरंजन जो इन आँखों से
देखने में नहीं आता, माया से रहित, आकार से रहित, शुद्ध ब्रह्म है। हे जीव! तू
उसका ध्यान कर। वह पारब्रह्म न गर्म है न ठण्डा है, न लाल है न पीला है