सन् 1748 ईं० की भारतवर्ष के राजस्थान राज्य के बागड़
प्रांत के किसी गांव की घटना है । उस गांव में एक जमींदार रहता था। उसने अपने खेतों में बाजरा बोया हुआ या। रात्रि में जंगली जानवर आकर खेत में घुसकर फसल का नुकसान करते थे किसानो की मेहनत पर पानी फेर जाते थे
जिससे किसानों का बहुत भरी नुकशान होता था. किसानों को अपनी खेती की रात्रि के समय भी रखवाली करनी पड़ती थी । एक रात वह किसान अपने खेत
की रखवाली पर था।
आधी रात्रि के करीब उसने बाजरे के खेत में भागते हुए जानवर की आवाज सुनाई दी । उसने जंगली जानवर समझकर अपनी
बंदूक से गोली दाग दी । गोली निकलकर उस जानवर के सीने को चीरती हुई
पार हो गई । उस बेचारे किसान को पता नहीं था कि जिस पर उसने गोली चलाई है,
वह जंगली जानवर नहीं अपितु
गऊ माता है । गऊ माता ने रंभाते हुये उसी क्षण प्राण त्याग
दिए । गऊ माता के वित्कार शब्द ने किसान का ह्रदय बीध दिया । वह भागकर उस तरफ गया और पास पहुँच कर देखा की गऊ माता मर चुकी थी। किसान सारी रात मृत गऊ माता के समीप बैठकर
क्षमा याचना करता रहा । प्रात: सूर्य उदय होने पर अपने परिवार के कुछ
व्यक्तियों को साथ लेकर एक गड्ढा खोदकर गऊ माता को समाधि दे दी और स्वयं भूखा
प्यासा रहकर गांव के व्यक्तियों को इकटठा किया । रात्रि की घटना सभी
के आगे कह सुनाई । उसने कहा, मैं बहुत दुखी हूँ । मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया
है । यह पाप मेरे हदय को अशान्त किये जा रहा है । मैने जान बुझकर यह पाप
नहीं किया, परन्तु इस घटना
के घट जाने पर मैं पापी तो हूँ ही । अत: मैं गाम-राम से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे
इस पाप का दण्ड दिया जाये । जिससे दण्ड भोगने के बाद मेरे
ह्रदय में शांति हो ।
गांव के स्याने
लोगों ने सारी बातों को समझा और परिस्थिति को देखते हुये उन्होंने फैसला दिया । हमारे धर्म में गौ हत्या का प्रायश्चित इस प्रकार है कि “गौ हत्यारा, काग के पंख को अपनी पगडी में सिर पर बांधकर, कपड़े से बनी गाय की पूंछ गले में लटका कर, नंगे-पांव गंगा-स्नान
के लिये जावे । रास्ते में किसी गांव में प्रवेश नहीं करे और गांव के बाहर ही ठहरे । अगर रोटी मांगने गांव में जाना भी पडे, तो आवाज
लगावे कि “मैं गौ-हत्यारा हूँ , इस भयानक पाप के प्रायश्चित करने
के लिये गंगा-स्नान करने जा रहा हूँ , आप दया करकै मुझ
मूर्ख को भोजन दे देवें” । इस प्रायश्चित के न करने पर हम गांव-वासी तुम्हारा हुकका-पानी
बन्द कर देगे और तुझे बिरादरी से निकाल देगे । वह किसान पंचायत का फैसला मानते हुए, घर से गंगा-स्नान के लिये निकल पड़ा । रास्ते में भूख-प्यास एवं अपमान का कष्ट सहता जा रहा था। एक दिन उसे बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी के बारे में किसी सज्जन व्यक्ति ने बताया कि वह पूर्ण सतगुरू
हैं । तेरा दुख दूर कर सकते हैं । कहावत प्रसिद्ध है कि "डुबते को तिनके का सहारा" अत: वह झज्जर से कबलाना गांव होते हुये परम धाम श्री छुड़ानी धाम में पहुँच गया । सत्यपुरुष
सतगुरु कबीर साहब जी के पूर्ण अवतार बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी तो अन्तर्यामी थे । उसे पास बुलाकर सिर पर हाथ
रखकर कहा कि “हे हंस, तू दुखी मत हो । तुम्हारा अब तक बहुत प्रायश्चित हो चुका है ।
अब तुझे प्रायश्चित के लिये हरिद्वार नहीं जाना”। वह बेचारा भूखा-प्यासा रहकर बहुत कमजोर हो
चुका था । पैदल चलकर हरिद्वार पहुँचने का सामर्थ भी नहीं था । बन्दीछोड़
गरीबदास साहिब जी के चरण पकड़ कर जोर-जोर से रोने लगा । परम दयालु बन्दी छोड़ जी
ने उसे उठाकर छाती से लगाया और उसके आँसुओं को पोंछते हुये प्यार से कहा कि “हम तुझे कल प्रात: काल यहीं पर गंगा-स्नान करवा देगे । अब तुम हाथ-मुँह धोकर भोजन करो”। बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब
जी के स्पर्श एवं कृपा दृष्टि से वह शांत हो गया । उसने भोजन किया, फिर सो गया । प्रात: काल बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी ने सभी को तालाब पर चलने
के लिये कहा । जब गौ-हत्यारे सहित सभी वहीं उपस्थित हो गये,
तब आप जी ने सबको आँखे
बन्द करने को कहा । थोड़ी ही देर में आप जी की आज्ञा से आँखें खोलकर देखा । वहाँ तो कूछ और ही नजारा था । वहाँ तालाब तो नहीं था मैं उसकी जगह गंगा जी की पावन
धारा वह रही थी । बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी ने गौ-हत्यारे सहित सबको गंगा-स्नान
करने के लिये कहा । सभी सन्त व भक्त गोता लगा-लगाकर स्नान कर रहे
थे, तब उस गौ-हत्यारे के हाथ
में एक लोटा आ गया । वह उसे पकड़ कर बाहर ले आया और सतगुरु जी को दे दिया । यह बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी की ही लीला थी । अत: बन्दीछोड़ जी ने कहा कि “जिसका यह लोटा होगा, वह स्वयं आकर ले
जायेगा” ।
गौ हत्यारा गंगा
जी के घाट से थोडी दूर गया । वह सोच रहा था कि “इतने लोगों की भीड़ लग रही है । यह हरिद्वार में
ही है या छुडानी धाम में” । तत्पश्चात् सामने से एक पण्डा आता दिखाई दिया ।
गो-हत्यारे ने उसके पास जाकर कहा कि “मैं भी इत्यारा हूँ, हरिद्वार गंगा स्नान के
लिये आया था” । पण्डे ने सारी बात समझ कर उससे संकल्प करवाया, फिर उसको प्रमाण-पत्र दिया । जब उसने वापिस बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी की तरफ मुख किया, तब सभी सन्त व भक्त बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जीके
साथ तालाब पर उपस्थित थे । वह चारों तरफ घूम-घूम कर देखने
लगा । वहां न कोई पण्डा था और न कोई लोगों की भीड़ थी । न ही गंगा की पावन
निर्मल धारा । वह समझ गया कि “यह सब लीला तो परम दयालु बन्दीछोड़ गरीबदास
साहिब जीने मुझ पापी का पाप समाप्त करने के लिये ही की थी”। श्री छुड़ानी धाम में वह
एक हफ्ते तक ठहर कर सत्संग व सेवा करता रहा । एक दिन बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी जांटी के पेड़ के नीचे बैठे सत्संग कर रहे थे । वहां
छुड़ानी गांव के एक पंडित जी आए जो गंगा रनान के लिए हरिद्वार गये
हुए थे । सत्संग के खाद, उसने सबके सामने बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी महाराज से कहा कि “इस बार हरिद्वार में बहुत बडी भीड़ थी । उस भीड़
के कारण मेरा लौटा भी जल में बह गया”। बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी ने वही लोटा, जो स्नान करते हुए भी हत्यारे को मिला था, मंगवाकर सामने रखा पूछा कि “आपका लोटा यह तो नहीं हैं तब पंडित जी ने कहा यही तो है वह
लोटा. परन्तु आपके पास कैसे आ गया? तब सभी ने आपसी चर्चा करते हुए सतगुरु लीला का
वर्णन उनके आगे भी किया, जो हरिद्वार गये हुये थे। तब सभी सतगुरू जी की
महिमा का वर्णन करते हुए अपने-अपने घरों के लिए प्रस्थान कर गए। अगले दिन गौ हत्यारा भी अपने गांव को चला गया ।
वहां लोगों को इक्कठे करके उसने प्रमाण-पत्र रख दिया । सभी गांव वालों ने उसे पास
बिठाया और कहा कि तुम्हारा पाप प्रायश्चित करने से समाप्त हो
चुका है । इस प्रकार सतगुरू जी ने उस गौ हत्यारे को पाप से मुक्त
किया। आप सभी के समक्ष बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी की यह लीला "परम योगेश्वर संत गरीबदास" नामक पुस्तक से ली गई है।
Jai Garibdas ji Maharaj Ji
ReplyDeleteJai garibdas ji maharaj ji
ReplyDelete