Saturday, September 14, 2024

आनन्द कारज (विवाह) की विधि

अनंता-अनन्त अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने श्री छुड़ानी धाम जिला झज्जर तहसील बहादुरगढ़ हरियाणा में सन १७१७ में अवतार लिया | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने जिव-कल्याण के लिए पावन-पवित्र कल्याणकारी अमृतमई वाणीश्री ग्रन्थ साहिबकी रचना की| जिसका लाभ उठा कर हजारों-लाखों भक्त इस भवसागर से पार उतर रहे हैं | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी की वाणी में कर्म भक्ति ज्ञान का समावेश हैं | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने अपने अनुभवी सत्य ज्ञान के साथ-साथ पुराण शास्त्र, गीता, रामायण, महाभारत, भागवत, उपनिषद एवम संत-वाणी के लम्बे कथनों को भी सरल और संषिप्त रूप में प्रस्तुत किया हैं


बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने अपनी वाणी में भिन्नभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया हैं इतनी ज्यादा भाषाओं का प्रयोग शायद ही किसी सन्त ने अपनी वाणी में किया होगा बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने अपनी वाणी में अनेक साखियाँ कही हैंराग कहे हैंछंद कहे हैंरमैनियाँ कही हैंपद कहे हैं सतगुरु बंदीछोड़ गरीबदास जी महाराज कृत अमृतमई बाणी अनुसार आनन्द कारज (विवाहकरने की विधि

सर्वप्रथम आनन्द कारज प्रारम्भ करते समय सब से पहले श्री दरबार साहिब में से "राग सेहरा" पढ़ जायेगा। उस समय दूल्हा आकर श्री दरबार साहिब की हजूरी में बैठेगा

रे नौ रंग लाग्या सेहरा ||टेक||

धरि धरि ध्यान निहारिये, तेरे मिटि जांहि तीनौ ताप। सुरति निरति संजम करो रे, जपि ले अजपा जाप।।

जांमा है जरी बफत का रे, पीतंबर फरकंत। शुन्य शिखर में देखि ले रे, अविगत दूलह कंत ।।

कानौं कुण्डल अति बनें रे, सेत छत्र है शीश। पारब्रह्म वर पाईया रे, है दुलह जगदीश।।

पदम झलकैं चरण में रे, गलि मोतियन की माल | शुन्य शिखर में देखि ले रे, अविगत रूप विसाल॥

शील सुमति दोऊ संगि है रे, ज्ञान घोरे असवार। करि दुलहनि तूं आरता रे, पुरुष खड़ा तेरे बारि॥

पलक उठाय कर देखि ले रे, रिमझिम रिमझिम होय। बाहरि भीतरि रमि रह्मा रे, और दूजा कोय।।

त्रिकुटी अंदर पैठ कर रे, तुम लावो शब्द सनेह | आदि अंति जाके नहीं रे, देखो पुरुष विदेह||

दास गरीब दया करी रे, तन मन वारौं प्रान धनि सतगुर उपदेश तूं, शीश करों कुरबान॥

 

राग सेहरा के उपरांत शब्द "हमरै सतगुरु आये हो , भल दिन आज घरी" पढ़ा जायेगा,  इसी समय दुल्हन श्री दरबार साहिब की हजूरी में आकर बैठेगी।

मरै सतगुरु आये हो , भल दिन आज घरी | टेक।

चतुभूर्जी चित मांहि लखाया, अष्टभुजी अनरागी सहंसभुजी संगीत पियारे, देखै सो बड़भागी।।

परमानंद अलख अविनाशी, संख भुजा सैलांना | खालिक बिन खाली नहीं संतो, सतगुरु कँ कुरबांना।।

सेत छत्र सिर मुकट बिराजै, पितंबर पट मांहीं। कोटिक रिद्धि सिद्धि आगै ठाढ़ी, अविगत अलख गोसांई।।

कोटिक अनमै छन्द करत हैं, नाचैं नाच नवेला। कोटि देवंगना गावत आई, अविगत पुर मे मेला॥

मारकंड रूंमी ऋषि नाचै, नाचै कागभुसंडा। कृष्ण गुरु दुर्वांसा नाचैं, जम सिर मारै डंडा।। 

संख असंखौं संत विराजैं, वार पार नहीं अंता। अविगत पुरुष कबीर भजौ रे, है दूलह महमंता।।

सकल सरोमनि है दिलदाना, मगन मुरारी मौला | दास गरीब जहां रंग राते, उजल भौरा धौला।।

 

आगे शब्द "राम दे, जै माला गल डारी, सीता राम दे"पढते समय पहले दुल्हन फूलों की माला दूल्हे के गलें में पायेगी फिर दूल्हा भी फूलों की माला दुल्हन के गले में पायेगा  

राम दे, जै माला गल डारी, सीता राम दे ।टेक|

स्याम घटा घनघोर गरज है, पचरंग तंबू ताना। बरसें मेघ मलार अमीरस, भीगै लाल पालाना।।

दामिनी खिमैं सकल दुःख भंजन, ना कर कंत पियाना | जन्म जन्म की दासी तुम्हारी, तूं हैं पुरुष पुराना ।।

 मैं आजिज अरदास करत हूँ, दया करों दिलदाना। सुख सागर रतनागर नीका, निराकार निरबाना।।

 गैबी गैब लहरि धुन उपजै, नहीं जिमी असमाना। उड़गन नही लिलाट चंद्रमा, नहीं सूर तहां भाना ।।

 इला पिंगला सुषमन सोहं, त्रिकुटी कँवल धर ध्यान। दास गरीब अनंत धुन उपजै, सतगुरु कूँ क़ुरबाना ।।


इस के पश्चात पाठी सतगुरु बंदी छोड़ गरीब दास साहेब जी की वाणी में से लामा के चारों शब्द उच्चारण करेगा। लामा के चार शब्द पढ़ते समय दूल्हा और दुल्हन दोनों श्री दरबार साहिब की चार परिक्रमा करेंगे। 

पहली तीन परिक्रमा में दुल्हन आगे और दूल्हा पीछे होगा और चौथी परिक्रमा मे दूल्हा आगे और दुल्हन उसके पीछे चलेगी। श्री दरबार साहिब की परिक्रमा करते समय वाणी का उच्चारण करने वाले श्री दरबार साहिब के ताब्य बैठे पाठी के अलावा और कोई दूसरा परिक्रमा के अन्दर नहीं होना चाहिये 

                      ।। पहली लाम चलती सतगुरु जीयो ।।

परपटन परधाम, जहाँ मन मानियाँ। सतगुरु के उपदेश, अगमपुर जानियाँ ।। 

जहॉ औघट घाट कपाट, दरीबा दूर है. कायर का क्या काम, पौहचसी सूर है ।। 

बंके ब्रह्मद्वार, पार नहीं पाइये। जाकै आदि अंत नहीं कोय, कहौ क्या गाइये ।। 

 शब्द महल सुखधाम, जहाँ चलि जाइये। झिलमिल झिलमिल होय, तहाँ मन लाइये ||

 जन दुलहनि दास गरीब, अकल पद पेखिया धन्य  बन्दी छोड़ कबीर, अटल वर देखिया।।


                             ।। दूसरी लाम चली सतगुरु जीयो ।।

 लगन लगी सत्य लोक, अमरपुर चालीयै। शुन्य मंडल सत्यलोक, दीप धरि वालीयै।।

 जोगिया नाद बजाय, रह्मा है ओलनै। सत्यलोक के अंक, लिखै है चोलनै ।।

 होते कीट पतंग, संग किस विधि लिये। कपै जौरा काल, सही जुग जुग जिये ।।

 मन राते सत्यलोक, सिंध में गैब है। उलटि मिले अनुराग, तहां नहीं ऐैब है ।।

 निर्गुण झड़ का भेव, भंवर कोई जानसी। दास गरीब समाधि, अमर पुर ठानसी ।।

 

                               ।। तीसरी लाम चली सतगुरु जीयो

धन्य सतगुरु बरियांम, अटल बर हम वरी। दुलहनि के बड़भाग, सुहागनि धन्य धरी।।

चलो सखी सत्यलोक, सेहरा गाइये। मोतीयन थाल भराय, सुं चौक पुराइये।।

हलद वान हित कीन्ह, बीन जहाँ बाज हीं। धन सतगुरु उपदेश, दिहा़ड़ा आज हीं।। 

दुलहनि दोहे देहि, सूं मंगल गांवही। सतपुरुष के धाम, सूं चौर ढुरावही।।

नूर रह्या भरपूर, दिवाना देश है। दुलहनि दास गरीब, तखति जिस पेश है।।

 

                              ।। चौथी लाम चली सतगुरु जीयो ।।

जोगजीत सतनाम, वियालीस बंस रे। चारयों जुग प्रमानि, रहे तेरा अंस रे।।

द्वादश पंथ चलाय, चिताया जगत रे। सतगुरु आदि अनादि, ल्याये निज भक्ति रे।। 

इन्द्र राज बड पदई, कऊुवा बीठ रे। महतलोक लग जानौं, झूठी पीठ रे।।

ज्यौं कमला मध्य बास, ऐसे हम आइया। विनसै काया कमल, बास कहां पाइया।।

गंधी नूर जहूर, हमारा अंग है कहता दास गरीब, नहीं कुछ रंग है ।।

  लामा के चारों शब्द के पश्चात शब्द “अब आनन्द पढ़ लये जी, सजन वर पाये, सजन वर पाये पढना है”। इस समय दूल्हा और दुल्हन श्री दरबार साहिब की हजूरी में बैठेगे। 

         अब आनन्द पढ़ लये जी, सजन वर पाये, सजन वर पाये ।। टेक ।।

दुलहनि दोहे देत है, मंगल चार उचार ! दूल्हा मुसकात है, असँख भान उजियार ।।

चेत अन्दर चौरी रची, ज्ञान का ढोल बजंत ब्रह्मा साखा पढ़त है, बैठे सुरनर संत ।।

फेरे दूल्हे सें लिये, मिल्या जोग वियोग। अटल पुरुष दुल्हा  वरया, धन्य सतगुरु संजोग ।।

विरहन विरहा ले गया, करता कार कहार। चली सखी सत्यलोक कँ, सतगुर चरण जुहार ।।

रंग  महल पटरानियां, दीन्हा अटल सुहाग। अमर कंत अनहद पुरी, धन्य दुलहनि बड़भाग ।। 

दुलहनि दास गरीब है, सभ सखियन की दास अदली पुरुष कबीर कूँ, दीन्हा निश्चल वास ।।

 

इस के पश्चात शब्दप्रभु होय सहाई जी, बाबला छड दे धर्म दिया चूलिया” पढ़ना है। पाठी द्वारा इस शब्द को पढ़ते समय दुल्हन के माता पिता श्री दरबार साहिब की हजूरी में हाथ में जल लेकर वरुण देवता को साक्षी  मानकर अपनी बेटी को दूल्हे को समर्पण  करते हुए दूल्हे  के हाथ पर संकल्प जल डाल देंगे |

                 प्रभु होय सहाई जी, बाबला छड दे धर्म दिया चूलिया ।टेक।

 छत्र मुकट महबूब का, रतन उजागर तेज हीरे माणिक झिलमिलैं, चलि सतगुरु की सेज ।। 

 संख चौंर जहाँ ढूरत हैं, छत्र मुकट सिर शीश। सतगुरु के उपदेश से, देख्या बिसवे बीस ।।

संख कोटि रवि झिलमिलैं, रूंम रूंम उजियार अगमदीप अनहदपुरी, बाजे बजै अपार ।।

 कलगी मुकट बिराजहीं, उजल हिरंबर दंत अजर अमर वर पाईया, अविगत दूलहा कंत ।। 

कोटि कुबेर भंडार हैं, चरण कमल प्रसादं। जहां दुल हनि आरति करै, संख असंखौ साध।।

अगर पौहप में बास है, त्रिवैणी के तीर। दास गरीब लखि अगम है, अविगत दूलहा कबीर ।।


अंत मे श्री दरबार साहिब के भोग की रस्म सम्पन्न की जाएगी और प्रसाद वितरण किया जाएगा

3 comments: