लाली मेरे लाल की, जित देखू तित लाल ।
लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गयी लाल ।।
पूर्ण भोग की सत् साहेब
संध्या आरती 30 दिसम्बर
मध्य के भोग की सत् साहेब
संध्या आरती 29 दिसम्बर
पाठ प्रकाश
पाठी पंडित प्रेम सिंह गरीबदासीय ई-ग्रंथालय की ओर से सर्व संगत को स्वामी लालदास जी महाराज भूरीवालों के अवतार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
पूर्ण भोग की सत् साहेब
संध्या आरती 30 दिसम्बर
मध्य के भोग की सत् साहेब
संध्या आरती 29 दिसम्बर
पाठ प्रकाश
स्वामी लालदास जी महाराज रकबे वालों का अवतार दिवस 29-30-31 दिसम्बर 2016 को श्री रामसर मोक्ष धाम, टपरिया खुर्द में स्वामी चेतनानन्द जी महाराज के सानिध्य में मनाया जायेगा। सतगुरु जी के दरबार साहिब में पहुँचकर अपनी हाजरी लगाये और पुण्य के भागी बने। इस संत समागम का सीधा प्रसारण आज प्रातः 10 बजे से देख सकते है
बन्दीछोड़ गरीबदास जी के अनुयायी परमविरक्त सन्त शिरोमणि भूरीवाले ब्रह्मसागर जी के अनुयायी स्वामी लालदास जी का जन्म भारतवर्श के पंजाब प्रांत के जिला लुधियाना के अन्तर्गत ”रकबा“ ग्राम में हुआ था।
पिता जी का नाम कान्ह सिंह और माता जी नाम प्रतापकौर था। आपका जन्म संवत् 1946 पौश सुदी द्वितीया का था। आपका बचपन का नाम मुन्शी सिंह था। आप बचपन से साधु सेवी और सत्संगी प्रवृति के थे। आपकी आरम्भ से ही गृहस्थ कार्यों में रूचि नहीं थी। आप हर समय आत्म-उद्धार की बातों में मग्न रहते थे। आप सुख की खोज में कई तीर्थों में गए परन्तु वहाँ सुख नहीं मिला। आप किसी योग्य गुरू की खोज में लग गए।आप कई डेरे
वालों के पास भी गए परन्तु आपको कोई योग्य गुरू नहीं मिला। काफी समय के बाद आपको
लोगों द्वारा पता लगा कि कोई संत भूरीवाले हैं जो पूर्ण त्यागी और भगवान के सच्चे
कृपा-पात्र हैं ऐसा सुनकर आपके मन में उनका दर्शन करने का संकल्प उठा। कुछ दिनों बाद संयोग से संत भूरीवाले रकबा गांव में ही एक झाड़ी में आकर बैठ
गए। यह घटना संवत् 1977 की है। एक दिन आप अपने कई साथियों के साथ
भूरीवालों के दर्शन करने गए। जब आप महाराज भूरीवालों के पास पहुंचे, तो उनसे कुछ दूरी
पर आपने अपना जोड़ा (जूती) खोल दिया और नमस्कार की। आपके साथियों ने बिना जोड़ा खोले नमस्कार की। आपका मर्यादा पूर्ण आचरण देखकर संत भूरीवाले बड़े प्रसन्न
हुए। आपने संत भूरीवालो का आशीर्वाद लिया और कहा कि आज हमें योग्य गुरू
मिल गया। उसी समय संत भूरीवालों ने भी कहा था कि हम भी बच्चू तेरी खोज में आए थे। आप पर भूरीवालों का ऐसा प्रभाव था आप भूरीवालों के दर्शन
करने जहां-तहां जाने लगे।
संवत् 1980 में आप ब्रह्मी गांव में महाराज भूरीवालों से
सन्यास लेने पहुंचे। परन्तु भूरीवाले मना करते रहे। आप कोई 8 दिन तक खाना-पीना
छोड़कर महाराज भूरीवालों के पास बैठे रहे और सन्यास की जिद करते रहे। रकबा गांव के
ही कुछ भक्तों ने आकर आपकी जिद को देखते हुए महाराज भूरीवालों से प्रार्थना की कि
इस बच्चे को आप सन्यास दे दें वरना यह प्राण त्याग देगा। भक्तों की प्रार्थना और
आपकी इच्छा को देखते हुए महाराज भूरीवालों ने आपको सन्यास दे दिया और आपका नाम
लालदास रखा। सन्यास के बाद आप काफी समय तक गुरू चरणों में रहकर सेवा करते रहे।
बीच-बीच में आप भूरीवालों से आज्ञा लेकर मण्डलियों में व तीर्थां में भी चले जाते
थे। आप स्वामी अनन्तप्रकाश जी की मण्डली में रहे और उनसे विचार-चन्द्रोदय व विचार
सागर पढ़ने लगे। परन्तु पढ़ने के बजाय आपका मन भजन में ज्यादा लगता था।
एक समय बरनाला
(जिला संगरूर) में अखण्ड पाठ का भोग पड़ रहा था। वहां महाराज भूरीवाले ताबे पर बैठे
थे और लाल दास जी चंवर कर रहे थे। भूरीवालों ने आपसे कहा कि हमारा शरीर जाने वाला
है, हमारे बाद तुम्हें इन
लोगों का ख्याल रखना है। आपने कहा सतगुरू जी हमारे अन्दर इतनी शक्ति नहीं है कि
मैं इस महान कार्य को कर सकूं। भूरीवालों ने कहा कि शक्ति तो हमारी ही कार्य करेगी
तुम्हें तो हमने आगे ही करना है। महाराज जी के वचनानुसार आप लोगों को सद्मार्ग
दिखलाने लगे। महाराज भूरीवालों के महाप्रायण के बाद महाराज की मण्डली बिखरने लगी।
सभी संतों ने विचार किया कि मण्डली को संगठित करने के उद्देष्य से किसी महापुरूश
को संत भूरीवालों का उत्तराधिकारी बनाया जाय। अंत में सम्प्रदाय के सभी संत-भक्तों
ने फेसला किया कि भूरीवालों की प्रथम बरसी पर गद्दीनशीनी का
आयोजन संपन्न किया जाए। अतः निष्चित तिथि पर (संवत् 2005) लुधियाना में संत-संगत इक्कठे होने लगे।
उत्तराधिकारी का चयन करने के लिए विचार विमर्श हुआ। सभी लोग सन्त भूरी वालों के
सबसे बड़े शिष्य वीतराय परम तपस्वी संत स्वामी देवादास के पास पहुंचे और उनसे
प्रार्थना की कि आप इस पदवी पर आसीन होकर लोक कल्याण करें।
देवादास जी ने इन्कार
कर दिया परन्तु लोगों ने सोचा कि सुबह इनको राजी कर लेगें। सुबह जब लोगों ने
देवादास जी की कुटिया देखी तो कुटिया खाली मिली। संत देवादास जी स्वतंत्र प्रवृति
के संत थे, सो रात को ही
अपने वस्त्र उठाकर कहीं चले गये। अब फिर वही समस्या खड़ी हो गई। चद्दर देने का समय
नजदीक आने लगा। सभी संतो को अब स्वामी लालदास जी से आशा थी कि वे इस जिम्मेवारी को
वहन कर लेंगे परन्तु लालदास जी भी मुक्त रूप से ही भजन करना चाहते थे। जब अखण्ड
पाठ का भोग लगा, उस समय गरीबदासी
सम्प्रदाय और दूसरे सम्प्रदायों के करीब 700 महात्मा उपस्थित थे। जब रस्म के समय कोई तैयार
नहीं हुआ, तो अवधूत स्वामी
नारायणदास जी ने स्वामी लालदास जी को जबरदस्ती ताबे पर बैठा दिया। उसी समय सारी
संगत ने ’जय बन्दी छोड़’
का जयकारा किया और हमारी प्रमुख
गद्दी (छुड़ानी धाम) के श्रीमहन्त गंगासागर जी ने उठ कर लालदास जी को
चन्दन का तिलक कर दिया और चद्दर उढ़ा दी। लोग फूल वर्शा करने लगे। संत ब्रह्मचारी
डेहलों वाले तो इतने खुश हुए कि कहने लगे कि आज हमारे बूटे की जगह बूटा लग गया है।
महाराज श्री की चद्दर के बाद आप उनकी आज्ञानुसार (लगभग 27-28 वर्श) कण्डी, दूणी, बीत के इलाकों में पैदल घूमकर लोगों का संत गरीबदास जी की
वाणी के अनुसार जीवन यापन करने की शिक्षा देने लगे। आपके उपदेशों से प्रभावित होकर
वहां हजारों व्यक्तियों ने हुक्का, तमाखू, मांस, मदिरा आदि व्यसन छोड़ दिए। विभिन्न गावों में
आपके भक्तों ने कुटियाएं बनवाई जहाँ पर साधु संतो की सेवा होती रहती है और गरीबदास
जी की वाणी के पाठ होते हैं। आप नैनीताल और राजस्थान में भी लोगों को धर्म उपदेश
देने जाया करते थे। आपके बहुत से शिष्य बन गए जिनके नाम निम्नलिखित हैं।
सर्वश्री स्वामी
परमात्मानंद, भूमानन्द, महेष्वरानंद, मंगलेष्वरानंद, शान्तानंद, बन्दीछोड़, हरिदेवानंद, कमलानंद, ब्रह्मानंद, परमानंद, कर्मप्रकाश, श्रद्धानंद, गंगानंद, सत्यानंद, ब्रह्मविद्या नंद, प्रकाषानंद, गोपालानंद, प्रेमानंद, योगीराज, फूलप्रकाश, सर्वानंद, विज्ञानानंद, अमृतानंद, शंकरानंद, दर्शनानन्द, नित्यानंद,
ध्यानमुनि, अखण्डानंद आदि।
आप के भक्तों ने
हरिद्वार में विशाल आश्रम ब्रह्मनिवास के नाम से बनवाया। टपरिया खुर्द, वृन्दावन में भी आपके नाम से
मंदिर बनवाया। आप राग द्वेश से रहित थे। किसी भी सम्प्र्रदाय का साधु आता, आप उसकी बहुत सेवा करवाते थे। इस प्रकार आप
जीवों को सुख का मार्ग दिखलाते हुए सन् 1975 श्रावण अश्टमी को लुधियाना में इस नष्वर शरीर
का त्याग कर निर्वाण गति को प्राप्त हुए। आपके पार्थिव शरीर को पूरे सम्मान के साथ
आपकी इच्छानुसार हरिद्वार ले जाया गया और वहां संत भक्तों की अपार भीड़ ने जय-जयकार
करते हुए आपका शरीर गंगा मैया को अर्पित कर दिया गया.
गरीबदासी
सम्प्रदाय में महाराज भूरीवालों की गुरू गद्दी के तीसरे गुरू के रूप में और स्वामी
लालदास जी महाराज (रकबे वाले) के सुयोग्य शिष्य के रूप में स्वामी ब्रहमानन्द जी
हुये। सन् 1912 में पंजाब
प्रान्त के जिला होशियारपुर के गांव चूहड़पुर (ब्रहमपुरी) में माता रामदेई की
सुभागी कोख से पिताश्री धनीराम के घर में अवतार लिया। गृहस्थ जीवन में रहते हुये
आपने उतराखण्ड के जनपद नैनीताल में बहुत बड़ा कृशि फार्म स्थापित किया तथा पंजाब से
अनेक परिवारों को लाकर यहां बसाया। आपका घर का नाम गिरधारीलाल था।
1962 के जून महीने की बात है, जब राजाओं जैसी जिन्दगी व्यतीत करते हुये,
आप स्वामी लालदास जी की
कृपा व आशीर्वाद से उतर प्रदेश के जिला बुलन्दशहर के कस्बा जहांगीराबाद में सरदार गिरधारी लाल से स्वामी ब्रहमानन्द बन
गये। आपने अपने गुरू के दिखाये हुए मार्ग पर चलते हुए अनेक स्थानों पर मंदिर,
विद्यालय, गौशालाऐं तथा अस्पताल बनवाये और इस देश के उच्च
पदों पर आसीन पदाधिकारियों व नेताओं के माध्यम से आम जनता की मूलभूत आवष्यकताओं
(पीने के पानी के लिए ट्यूबवैल, सड़के व पशुओं के अस्पताल, खेल के लिए स्टेडियम आदि बनवाकर) को पूरा किया। आपने ब्रहम निवास आश्रम
हरिद्वार में सायं के समय में चलने वाले अन्नक्षेत्र को बहुत अच्छे ढंग से आगे
बढ़ाया। आपने अपने संत जीवन में कभी पैसे को हाथ से नहीं छुआ। आपने पूरे जीवनभर
सूती कपड़े व कपड़े का ही जूता पहना तथा विरक्त साधुओं वाला जीवन ही व्यतीत किया।
आपने 40 वर्शों के धार्मिक जीवन में अभक्ष्य भक्षण, अपेय पान, मादक पदार्थों के विरूद्ध महा अभियान चलाया,
जिसमें लाखों व्यक्तियों
को शुद्ध आहार (शाकाहार), शुद्ध व्यवहार और शुद्ध विचार की त्रिवेणी में अस्नान कराया तथा नामवाणी के
प्रचार से जो धार्मिक ज्ञान बिखेरा, वह अपने आप में एक मिसाल है। आपने संत समाज के द्वारा
गौ-हत्या के विरूद्ध आन्दोलन में भी भाग लिया था। आपने गरीबों की भलाई के लिये
पंजाब के पिछड़े क्षेत्रों के जिला नवांशहर, होषियारपुर, रोपड़ तथा जिला लुधियाना में 5 डिग्री कालेज, जिनमें 3 कालेज लड़कियों के है। 3 पब्लिक स्कूलों व कई गऊशालाओं व एक
अस्पताल का निर्माण भी करवाया। पंजाब में
एक नवोदय विद्यालय बनवाने में आपका सराहनीय योगदान रहा। स्वामी ब्रहमानन्द जी लोगों
में आध्यात्मिक ज्ञान बांटते हुये व शिक्षा का प्रसार करते हुये एक मई 2002 को पंजाब प्रान्त के जिला होषियारपुर के ग्राम
भवानीपुर के आश्रम में पंच भौतिक शरीर का त्याग करके ज्योति जोत समा गये। आपके
पार्थिव शरीर को हरिद्वार में भारी जनसमूह की उपस्थिति में 4 मई 2002 को जल समाधि दी गई। इस मौके पर श्रीमहन्त
दयासागर जी सहित पंथ के अनेकों महापुरूष थे।
गरीबदासीय सम्प्रदाय
में सतगुरू ब्रहमसागर भूरीवालों की पवित्र गद्दी-परम्परा :-
1 सतगुरू ब्रहमसागर भूरीवाले जी
2 स्वामी लालदास जी (रकबे वाले)
3 स्वामी ब्रहमानन्द जी (गऊओं वाले)
4 स्वामी चेतनानन्द जी वेदांताचार्य
पूज्यनीय स्वामी
ब्रहमानन्द जी के पार्थिव शरीर को जलसमाधि देने के पष्चात दिनांक 04-05-2002 को सायं 4 बजे ब्रहमनिवास (दक्षिणी), सप्त सरोवर रोड़, हरिद्वार में सर्वोच्च
गरीबदासीय पीठ, छतरी साहिब छुडानी धाम के आचार्य आदि
गद्दीनशीन श्रीमहन्त दयासागर जी की अध्यक्षता में शोकसभा एवं एक विशेष सभा का आयोजन किया गया। सभा का संचालन
स्वामी ब्रहमानन्द जी के गुरूभाई स्वामी प्रकाशानन्द जी ने किया। पहले 2 मिनट का मौन धारण किया गया। तत्पष्चात
श्रीमहन्त जी ने स्वामी जी के उतराधिकारी के बारे में चर्चा की। वैसे तो स्वामी
ब्रहमानन्द जी ने अपने जीवन काल में ही पंजाब प्रांत के मालेवाल गांव (कंडी) में
श्रीमहन्त दयासागर जी के श्रीमुख से अपने परमशिष्य स्वामी चेतनानन्द जी वेदांताचार्य
को अपना उतराधिकारी घोषित करवा दिया था, फिर भी श्रीमहन्त जी ने दिनांक 04-05-2002 की विषेश सभा में स्वामी ब्रहमानन्द जी के
अन्य सभी शिष्यों एवं भक्त समाज द्वारा स्वामी चेतनानन्द जी के उतराधिकार के
सम्बंध में सहमति व समर्थन व्यक्त करवाया।
सप्त सरोवर रोड, हरिद्वार स्थित महाराज लालदास जी के मंदिर
ब्रहमनिवास (दक्षिणी भाग) गरीबदासीय आश्रम में दिनांक 17-05-2002 को प्रातः 10:00 बजे श्रीमहन्त दयासागर जी (छुडानी धाम) ने ब्रहमलीन स्वामी
ब्रहमानन्द भूरीवालों की सत्रहवीं के उपलक्ष्य आचार्य श्री गरीबदास जी वाणी की
पूर्णाहुति की। तत्पष्चात गरीबदासीय पंथ की परम पूज्यनीय वरिष्ठ माताश्री ओमवती जी
(छुडानी धाम) की विषेश उपस्थिति में एवं उनकी आज्ञानुसार श्रीमहन्त दयासागर जी की
अध्यक्षता में ब्रहमलीन स्वामी ब्रहमानन्द भूरीवालों का श्रद्धांजलि समारोह एवं
उतराधिकार समारोह प्रारम्भ हुआ। तत्पष्चात स्वामी ब्रहमानंद जी के गुरूभाई स्वामी
प्रकाशानन्द जी ने छतरी साहिब, छुडानी धाम के आचार्य आदि गद्दीनशीन/पीठाधीष्वर श्रीमहन्त दयासागर जी से सविनय
निवेदन किया कि गरीबदासी सर्वोच्च पीठ के पीठाधीष्वर एवं गरीबदासीय पंथ के प्रमुख
होने के नाते आप सर्वप्रथम महाराज भूरीवाले की गद्दी पर स्वामी चेतनानन्द
वेदांताचार्य को बिठाएं और उतराधिकार की चद्दर एवं तिलक प्रदान करें।
श्रीमहन्त दयासागर जी ने उठकर पूज्यनीय
माताश्री के आसन के सामने बैठे स्वामी चेतनानन्द जी को प्रेम पूर्वक हाथ पकड़कर
अपने साथ ले जाकर महाराज भूरीवालों की गद्दी पर आसीन किया और चद्दर व तिलक दिया।
तत्पष्चात हरिद्वार स्थित अखाड़ों एवं आश्रमों के पूज्यनीय महापुरूशों एवं संचालकों
ने रस्म सम्पन्न की। अन्त में स्वामी चेतनानन्द वेदान्ताचार्य के गुरू भाईयों,
महाराज भूरीवाले गरीबदासी
ट्रस्ट के सदस्यों, स्वामी भूरीवालों
की संगत एवं अन्य गरीबदासीय सन्तों की संगत ने भावपूर्वक रस्म सम्पन्न की।
परमपूज्य वरिष्ठ गरीबदासीय महामंडलेश्वर स्वामी डाॅ. श्यामसुन्दर दास शास्त्री जी
ने आशीर्वाद दिया और मंच संचालन किया। परमपूज्य स्वामी चेतनानन्द जी वेदांताचार्य
ने सर्व संगत को विष्वास दिलाया कि वे भी पूर्ण भाव से छुडानी धाम और पंथ की सेवा
में भरपूर योगदान देंगे। इसके पष्चात सर्व संगत व षटदर्शन साधु समाज के लिए विषेश
भण्डारा एवं दक्षिणा का कार्यक्रम हुआ।आज वर्तमान में स्वामी चेतनानन्द
वेदान्ताचार्य जी गुरु-गद्दी पर विराजमान है ।
सर्व संगत को
पाठी पाठी पंडित प्रेम सिंह गरीबदासीय ई-ग्रंथालय की ओर से नववर्ष 2017 की हार्दिक
शुभकामनाएँ ।
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