Wednesday, August 1, 2018

पूज्य स्वामी जगदीश्वरानंद जी

हमारी गरीबदासीय संप्रदाय में अनेकों ही संत-महापुरुष हुए है। जिन्होंने समय समय पर अवतार लिया और सतगुरु बंदीछोड़ गरीबदास साहिब जी की वाणी का बड़े ही जोर-सोर से प्रचार किया । उन्ही संत महापुरुषों में से एक हुए स्वामी जगदीश्वरानंद जी । पूज्य स्वामी जगदीश्वरानंद जी का जन्म पंजाब प्रांत के जिला लुधियाना में गांव रकबा में हुआ ।

वहां पर सतगुरु ब्रह्मसागर जी महाराज भूरीवालों की एक कुटिया है। जन्म के कुछ दिन बाद माताजी इन्हें सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों के चरणों में कुटिया पर ले गई । उस समय यह बच्चे ही थे। जिस समय माता जी ने प्रणाम किया तो यह रोने लसी। उस समय सतगुरु ने महावाक्य उच्चारण किया कि "मस्तराम क्यों रोता है"। और माता जी को कहा कि "यह बच्चा मस्तराम ही है और सतगुरु का हंस है" । जब सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवाले यहां कुटिया पर आते तो यह सत्संग में जाया करते थे। कुछ समय बाद जब स्वामी जी की आयु 15 वर्ष की थी इन्होने सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों के चरणों में प्रार्थना की कि "हे महाराज मेरे ऊपर कृपा करो, मुझे साधु बना लो"। सतगुरु जी ने कहा कि "अभी समय नहीं है, क्योंकि आपके कर्म मेंं दो फ़ल है"। तो कुछ समय बाद उसी महावाक्य के अनुसार इनकी शादी हुई और थोड़े समय बाद एक लड़के का जन्म हुआ और 2 साल बाद दूसरे बच्चे का जन्म होने वाला था। तो यह सद्गुरु की शरण में आए और दंडवत करके प्रार्थना की कि "अब तो आप जी के महावाक्य पूरे हो गए हैं, तो आप अब मेरे ऊपर कृपया करें और बेख भगवान की शरण देने की कृपा करो"। उस समय स्वामी जी की आयु 27 वर्ष की थी। इनको कुटिया पर ही अपना शिष्य बनाया तथा श्री ग्रंथ साहिब जी में से महावाक्य लेकर इनका नाम जगदीश्वरानंद रखा गया और कहा कि "अब तुम ने उस जगदीश के आनंद में रहना है"। इसके बाद स्वामी जी एक साधुओं की मंडली में चले गए और वहां उन्होंने विद्या ग्रहण की। उसके बाद इन्होंने गांव मानक खाना जिला बठिंडा में आकर कथा तथा प्रचार किया और बहुत लोगों ने इन का प्रचार सुनकर व्यसन त्याग कर इनकी शरण ली तथा प्रेमी भक्त बने । एक समय की बात है स्वामी जगदीश्वरानंद जी जलूर धाम कुटिया में ठहरे हुए थे उस समय यहां मंदिर नहीं बना था। वैसे ही यहां सतगुरु का पूजन तथा पाठ हुआ करता था। दिन के तीसरे पहर आप अकेले उस जगदीश (प्रभु) के आनंद में लीन हुए बैठे सोचने लगे कि "जंगल में आकर सद्गुरु ने शरीर छोड़ा, क्योंकि जहां शक्ति वाली जगह हो वहां तो चमत्कार दिखाई देना चाहिए, परंतु यह कुछ नहीं दिखाई दे रहा"। ऐसा सोचने पर तुरंत ही आकाश में सफेद रोशनी हुई और उसी समय सदगुरु कबीर साहिब जी तथा सतगुरु गरीबदास जी वह सतगुरु भूरीवालों ने दर्शन दिए। उसी समय स्वामी जी ने उठकर दंडवत प्रणाम की और कहा कि "सतगुरु मेरी संकाय सब निवृत्त हो गई है, आप तीनों स्वरूप यहां पर हो"। उसी समय इन्होंने यहां पाठ करने तथा सेवा करवानी प्रारंभ कर दी । अपनी देख-रेख में सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों का बड़ा सुंदर मंदिर तैयार करवाया तथा दीवान खाना, कमरे आदि प्रारंभ करवाएं। उन्होंने अपना सारा  जीवन यहाँ सेवा में लगा दिया और अपने शिष्य स्वामी स्वरूपानंद नैयायिक जी को भी यही उपदेश दिया कि जो कुछ भी सो यहीं पर है। आप सेवा करवाओ, तो यही मेरी सेवा है।यहां पर इन्होंने सदगुरु कबीर साहेब की मंजी तैयार करवाई जिसमें सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों की सारी सामग्री रखी हुई है। यह था इनका सद्गुरु के प्रति सच्चा प्रेम श्रद्धा और विश्वास । इन्होंने अपना ज्यादा समय ददाहूर जिला संगरूर में बाहर जंगल में की कुटिया में व्यतीत किया और 24 घंटे बाद भोजन करते तथा साधना में लीन रहते थे। वहां पर श्री गरीबदास जी की अमृतमई वाणी के 101 श्री सहज पाठ किए और सारी ही आयु में माया को हाथ नहीं लगाया। त्यागी जीवन व्यतीत किया।

 सन 1972 में गांव बल्लडवाल कुटिया में ठहरे हुए थे और इनका शरीर अस्वस्थ था । उनके स्वरूप के शरीर की तरफ देखते हुए स्वामी स्वरूपानंद जी ने स्वामी विद्यानंद जी को आदेश दिया कि स्वामी जगदीश्वरानंद जी से पुुछो कि "हमारे वर्तमान में कौन-कौन धाम है और आप की अंतिम इच्छा क्या है"। उसी समय स्वामी विद्यानंद जी स्वामी स्वरूपानंद जी के चरणों में आसन के पास गए और पूछा तो स्वामी स्वरूपानंद जी ने बताया कि "सर्वप्रथम तो श्री छुड़ानी धाम है फिर रामपुर धाम और जलूर धाम यह तीनों धाम है। और कहा कि हमारी इच्छा है कि हमें सतगुरु बंदी छोड़ गरीबदास साहिब जी की अमृतमई वाणी का पाठ सुनाया जाए । उसी समय स्वामी विद्यानंद जी जलूर धाम में गए और वहां से पाठियों को साथ लेकर बल्लडवार कुटिया में पहुंचे और स्वामी जी की आज्ञा अनुसार श्री अखंड पाठ प्रारंभ करवाया और साथ वाले कमरे में स्वामी जी का आसन लगवाया । स्वामी जी ने 48 घंटे पाठ श्रवण किया तथा तीसरे दिन मर्यादा पूर्वक भोग लगाया गया । बाद में स्वामी जगदीश्वरानंद जी ने स्वामी विद्यानंद जी और स्वामी स्वरूपानंद जी को बुलाया और कहने लगे कि हमारा जो पांच शरीर है, यह जाने वाला है । आप इसे सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों के चरणों में जलूर धाम में ले जाना, इतना कहकर परलोक को चले गए। इस समय सतगुरु जी की आयु 87 वर्ष थी। उसी समय सर्व संगत के साथ स्वामी जगदीश्वरानंद जी के पंचभौतिक शरीर को जलूर में लाया गया और पूरी मर्यादा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया। जहां पर उनकी समाधि भी बनाई गई है। हर साल उनके निमित्त आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन श्री अखंड पाठ प्रारंभ करके द्वादशी को भोग लगता है तथा 3 दिन भंडारा चलता है। इस समय पर इनके शिष्य,सेवक और महापुरुष एकत्रित होकर इनके चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।स्वामी जी हर 6 महीने बाद श्री छुड़ानी धाम में अपने शिष्यों सहित जाया करते थे तथा तन मन धन से सेवा करते थे। इनका छुड़ानी धाम में बहुत विश्वास और श्रद्धा थी क्योंकि सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों का यही कहना था कि हमारा सेवक वही है जो परम् धाम श्री छुड़ानी धाम की सेवा करें । वर्तमान में सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों का निर्वाण स्थान श्री जलूर धाम एक विराट शक्तिपीठ है, सतगुरु ब्रह्म सागर जी महाराज भूरीवालों की कृपा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है वर्तमान पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर परम पूजनीय त्याग मूर्ति तपोनिष्ठ स्वामी विद्यानंद जी महाराज एक दिव्य विभूति है जो संगतों के कल्याण के प्रारंभ से वर्तमान तक प्रयासरत है।

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