Friday, March 3, 2023

गरीबदासीय कृपा पर्व कब और क्यों मनाया जाता हैं ?

भारत की वसुंधरा पर समय-समय पर कारक महापुरषो का अवतार हुआ| जिनमे से एक अलौकिक अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत बंदीछोड कबीर दास साहिब जी हुये| सतगुरु कबीर साहिब जी महाराज अपने निज लोक से अपने हंसो के उद्धार के लिए हर युग में यहाँ अवतार लेते हैं| सद्गुरु कबीर साहिब जी के ही पूर्ण अवतार आचार्य गरीब दास जी महाराज का प्राकटय भी अद्वितीय है | जो हम सब जीवो के उदहार के लिए, विकारो से छुटाने के लिए पूज्य पाद प्रात: स्मरणीय सतगुरु गरीब दास साहिब जी के रूप में छुड़ानी धाम को पवित्र किया| आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व हमारे कल्याणार्थ अवतरित हुए| 

पाठी पंडित प्रेम सिंह गरीबदासीय ई-ग्रंथालय की ओर से गरीबदासीय कृपा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

भूले हुए मनुष्य को बोध कराने के लिए सरल भाषा में अनुभवी वाणी की रचना की और सदुपदेश देकर अनेकों अज्ञानी जीवों को सदमार्ग पर लगाया | सन् १७१७ मे अनंता अनंत अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत बंदीछोड दास साहिब जी ने श्री छुड़ानी धाम जिला झज्जर तहसील बहादुरगढ़ हरियाणा में पिता श्री बलराम जी के घर माता रानी जी की सुभागी कोख मे अवतार लिया|

 बात वि०सं० १७८४ फाल्गुन शु० दवाद्शी की है जब रोजाना की तरह बाल्य अवस्था मे गरीब दास जी महाराज गायें चराने खेतो में गए हुए थे| तब वह गायो को अपने और साथियों को सोप कर, स्वम् एकांत मे ध्यान लगा कर में बैठ गए| कुछ समय बीत जाने पर गरीब दास जी महाराज के साथी बालक महाराज जी के पास आये | तभी वँहा असंख्यो सूर्यो का प्रकाश आसमान में दिखाई देने लगा जिसको देखकर सब बालक चकित रह गए और सोचने लगे की शायद आज सूर्य देवता धरती पर आ रहे है, पर उस प्रकाश में बड़ी ही शीतलता थी|

तभी एक दिव्य ज्योत बन्दीछोड़ कबीर साहिब जी आकाश से पृथ्वी पर आती हुई दिखाई दी ठीक उसी जगह जहाँ गरीब दास जी महाराज समाधि लगा कर बैठे हुए थे| कुछ बालक सद्गुरु कबीर साहिब जी को देख कर घबरा गए की पता नहीं कोन आ गया | तभी बालको ने आचार्य गरीब दास जी महाराज को उठाया और कहा कि “गरीबा देखो कोन आ आया है"| तभी गरीब दास जी महाराज ने देखा कि साक्षात सद्गुरु कबीर साहिब जी उनके सामने खड़े है |गरीब दास जी ने सद्गुरु कबीर साहिब जी महाराज जी के चरणों में दण्डवत प्रणाम किया|तब गरीब दास जी महाराज ने प्रार्थना कि “महाराज यदि आप आदेश दे तो मै आपके लिए भोजन ले आऊ”|इस पर कबीर साहिब जी महाराज ने कहा कि हम भोजन तो नहीं करेंगे पर दूध जरुर पियेंगे|बन्दीछोड़ गरीब दास जी महाराज ने कहा की “महाराज जी आपकी की कृपा से बहुत गाये है उनको आपके पास ले आता हूँ फिर आपको जितना दूध पीना हो पी सकते हो”|कबीर साहिब जी महाराज ने कहा कि “हम तो बिन बियाई गाय (बछिया) का दूध पियेंगे”| 

तभी गरीब दास जी ने कई बछिया लाकर कबीर साहिब जी महाराज के सामने खड़ी कर दी और कहा कि "महाराज जी जिस बछिया के उप्पर आप हाथ रखोगे उसी का हम दूध आपको पिलायेंगे"| कबीर साहिब जी महाराज ने एक बछिया पर हाथ जो की गरीब दास जी महाराज को सबसे प्रिय थी | आचार्य गरीब दास जी महाराज ने बछिया के नीचे बर्तन रखा और फिर उसकी पीठ पर हाथ फेरा जिससे आपने आप ही उस बछिया के स्तनों से दूध की धाराये बहने लगी और बर्तन भर गया | आचार्य गरीब दास जी महाराज ने वह दूध कबीर साहिब जी को भेट किया तो कबीर साहब ने वह दूध आधा पी कर गरीब दास जी को दे दिया और कहा कि ”गरीबा अब तुम इसे पियो” | उस समय कबीर साहब ने मर्यादा पालन के लिए आचार्य गरीब दास जी महाराज को उपदेश व दीक्षा दी और तभी वँहा से अंतर्ध्यान हो गए | और उधर गरीब दास जी महाराज समाधी में लीन हो गए क्युकि कबीर साहिब जी, गरीब दास जी की दिव्य ज्योत को अपने साथ सतलोक की यात्रा पर ले गए थे | और यँहा प्रथ्वी पर सिर्फ गरीब दास जी महाराज का शरीर था जो उन्होंने इस संसार की मर्यादा के लिए धारण किया हुआ था| इस यात्रा का वर्णन बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी ने अपनी वाणी मे बड़े ही विस्तार पूर्वक गुरुदेव के अंग के अंतर्गत उल्लेख किया हुआ है| साहिब जी वाणी मे फरमाते है कि:

गरीबप्रपट्टन परलोक हैजहां अदली सतगुरू सार। 
भक्ति हेत से ऊतरेपाया हम दीदार ।।1।।
सब लोकों से पर उतम लोक है, जिसे सत्यलोक कहते हैं। इस उतम लोक में अदली (न्यायकर्ता) सत्यपुरूष सतगुरु कबीर साहिब जी विराजमान हैंजो समस्त सृष्टि के सार हैं। संसार के प्राणियों के लिए भक्ति का हित करके सतगुरु जी इस मृत्यु लोक में उतरे। ऐसे सतगुरु का हमने दर्शन पाया।

दूसरी तरफ पृथ्वी पर काफी समय बीत जाने पर गरीब दास साहिब जी का शरीर स्थिर अवस्था मे था क्यकी उनकी दिव्य ज्योत को सद्गुरु जी सतलोक की यात्रा पर ले गये थे. साथी बालको को लगा कि उनके प्राणों की गति बिलकुल रुक गयी हैं यह देख कर बालक बहुत घबरा गए और महाराज जी के घर आकर उनकी माता से कहने लगे कि “भुआ गरीबा मर गया, एक दाढ़ी वाला बाबा आया था, उसका झूठा दूध गरीबा ने पी लिया और वह मर गया”|यह सुनकर गरीब दास साहिब जी के माता-पिता मुर्छित हो गए और सभी ग्राम वाले भी गरीबा से बहुत प्यार करते थे तो उनको भी बहुत बुरा लगा और सारे छुड़ानी धाम में शोक की लहर दोड़ गई| सभी ग्रामवासी व माता-पिता उस स्थान पर पहुँचे, जंहा सद्गुरु जी अचेत अवस्था में पड़े हुए थे| उस समय शोक मानो अपने दीर्घ समुदाय सहित उसी स्थान पर आ प्रकट हुआ था | तभी ग्राम के बड़े बुजर्गो ने गरीब दास जी महाराज के माता-पिता को धर्य बंधाया और गरीब दास जी के अंतिम संस्कार की तयारी करने लगे और महाराज जी को श्मशान भूमि पर ले गए और भूमि पर रख दिया |

इस अघटित घटना से सभी को आघात पहुंचा था|चिता को मुखाग्नि देने की तैयारी हुई तभी गरीब दास जी के पैर का अंगूठा हिलता दिखाई दिया और साथ ही उनके मुख से “बंदी छोड़ व सत साहिब” शब्द निकले | यह घटना देख कर सब के अंदर एक ख़ुशी की लहर उठ गयी | तभी गरीब दास जी महाराज के बंधन खोल दिए गए| बंधन खुलते ही आप उठ बैठे | माता-पिता ने गरीब दास जी महाराज जी को सीने से लगा लिया और माता-पिता ने कहा “बेटा यह तूने क्या किया, हमे इतना दुःख क्यों दिया” | तब गरीब दास जी महाराज ने आश्चर्य से कहा कि “आप मुझे शमशान में ले आये, मुझे मरा हुआ समझा !! मै तो सोया हुआ था” | यह सुनकर पिता जी ने कहा कि "बेटा ऐसा सोना कैसा तेरी तो नाड़ी तक बंद हो गयी थी” | तब वँहा परस्पर बाते होती रही फिर सभी लोग गरीब दास जी महाराज के साथ घर वापिस आ गए | इस प्रकार एक बार फिर से प्रशन्ता की लहर ने छुड़ानी धाम पर कब्ज़ा कर लिया |

इस दिन के बाद बन्दीछोड़ गरीबदास जी हमेशा वाणी का उच्चारण करते रहते थे| माता पिता को लगा की बच्चे के दिमाग पर कोई असर हो गया है, गरीब दास साहिब जी की बातें लोगों को समझ नहीं आ रही थी| एक दिन एक विद्वान पंडित को दिखाया, पंडित ने जब गरीब दास साहिब जी के श्रीमुख से वाणी सुनि तो वह समझ गया की यह कोई साधारण बालक नहीं बल्कि कोई महान अवतारी पुरुष है| उसने लोगों को बताया की यह बालक जिस वाणी का उच्चारण कर रहा है, वह वेदों का सार है यह बालक महापुरुष है| महाराज जी ने अपनी वाणी से अनेको जीवों को इस भवसागर से पार कराया| 
जनता को सत्य, अहिंसा, एकता, विश्वबन्धुत्व का सद्गुरु जी ने उपदेश दिया | सद्गुरु जी की वाणी में प्रेम व मधुरता का ऐसा आकर्षण था की दूर-दूर से लोग उनके मधुर वचनों को सुनने के लिये आने लगे| उस प्रेममय वाणी से जनता प्रभावित होने लगी |
आप जी की वाणी इतनी रसीली थी की जो उसको एक बार महाराज जी के मुख से सुन लेता था वह उस मनुष्य के कंठ से कभी नही उतरती थी
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६१ वर्षो तक गरीब दास जी महाराज ने मानवता के लिए अदभुत कार्य किया असंख्य भटके हुए जीवो को सत के मार्ग पर चलाया | ६१ वर्षो के पश्चात गरीब दास जी महाराज ने निर्णय किया कि “अब इस नाश्वर शरीर को त्याग कर अपने नीज लोक सतलोक को वापिस जाना चहिये” | आप जी ने फाल्गुन की द्वादशी १८३५ की तिथि चुनी | जब यह बात महाराज जी के भक्तो को पता चली उन सभी में शोक की लहर दोड़ गई | पुरे छुड़ानी धाम में उदासी छा गयी | तब सभी शिष्यों ने महाराज जी से प्रार्थना कि “महराज जी अभी आप यँहा से न जाये अभी हमे आप के मार्ग दर्शन की बहुत जरुँत है” | 

 भक्तो की बार बार विनती करने पर महाराज जी ने कहा कि “ठीक है हम अभी नही जा रहे तुम सभी बताओ कितना और समय तुम लोग हमारा दर्शन चहाते हो”| सभी भक्त खुशी से झूम उठे और तब खुशी खुशी में भक्तो ने यह कह दिया कि “महाराज जी हम लोग 6 महीने और आपके दर्शन चहाते है” | समय के चक्र को तो चलना ही था| वि. सं . १८३५ भाद्रपद शुक्ल द्वितीय को आपने अपना तेजपुंज का शरीर त्याग कर अपने निज लोक सतलोक को चले गये | 

 अखिल ब्रह्मंड नायक ज्योत बंदीछोड कबीर दास साहिब जी व उन्ही के पूर्णावतार बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी के साक्षत्कार के निमित बोध दिवस व भक्तों के अनुरोध पर 6 महीने और दर्शन देने के उपलक्ष्य पर फाल्गुन शु० दवाद्शी के दिवस को समस्त गरीबदासीय भेख मिलकर बड़ी ही धूम धाम से कृपा पर्व के नाम से परम धाम श्री छुड़ानी धाम मे मनाया जाता है|

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