सत्यपुरुष सद्गुरु कबीर साहिब जी के पूर्णावतार बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी अपनी पावन-पवित्र कल्याणकारी अमृतमयी वाणी में “जम का अंग” के अंतर्गत यमलोक का हाल वर्णन करते है | प्रत्येक प्राणी को अपने किये हुए कर्मो का शुभ-अशुभ फल अवश्य भुगतना पड़ता हैं | विधि का ये विधान अटल है इसे कोई टाल नहीं सकता | पाप कर्मो का फल यमलोक में जाकर भुगतना पड़ता हैं जो बड़ा ही भयंकर लोक है |
गरीब, जम किंकर के धाम कूं, साईं न ले जाय |
बड़ी भयंकर मार है, सतगुरु करै सहाय ||
गरीब, जम किंकर के धाम कूं, साईं न ले जाय |
बड़ी भयंकर मार है, सतगुरु करै सहाय ||
गरीब, कारे कारे किंगरे, नीला जम का धाम |
जेते जामे जीव है, नहीं चैन विश्राम ||
जेते जामे जीव है, नहीं चैन विश्राम ||
गरीब, है तांबे की धरतरी, चोरासी मध कुंड |
आदि अंत के जिव जित, होते रुंडक मुंड ||
आदि अंत के जिव जित, होते रुंडक मुंड ||
यमलोक का वर्णन करके बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब प्राणियों को सचेत कर रहे है कि हमेशा पाप कर्मो से बचना चहिये |परमात्मा किरपा करे, यमलोक में न जाना पड़े क्युकि वँहा बड़ी भयंकर मार पड़ती हैं | इससे सतगुरु जी रक्षा करे | यमलोक नील वर्ण का हैं,जिसके ऊपर काले रंग के मुंडेर बने हैं | जितने जीव इस लोक में जाते हैं उन्हें एक पल के लिए भी शांति नहीं मिलती | जीव हर समय तडपते रहते हैं | यमलोक में तांबे की धातु से बना फर्श है जो अग्नि जैसे तपता रहता हैं | उस पर चलने से मनुष्य का कोमल शरीर जलने लगता हैं | तांबे की जमीं पर चोरासी कुंड खून से भरे हैं जिसमे पड़े अनेक प्राणी नाना प्रकार के कष्ट भोग रहे है
करनी भुगते आपनी, नाना बिधि की मार ||
गरीब, चोदा कोटि भयंकरम, चोदा मुनि दिवान |
कोटि कोटि ताबै किये, साईं का फुरमान ||
कोटि कोटि ताबै किये, साईं का फुरमान ||
गरीब, रुधिर भरे जहाँ कुंड हैं, कुंभी जिनका नाम |
दवारा हैं मुख लोड का, बड़ा भयंकर धाम ||
दवारा हैं मुख लोड का, बड़ा भयंकर धाम ||
यमलोक में ८४ कुंड हैं और खम्बे तो बे-शुमार है, जिनसे बांध कर प्राणी को बहुत मारा जाता हैं | सभी प्राणी इस लोक में अपनी करनी के अनुसार दण्ड भोगते हैं | यमलोक में रहने वाले दूतो की संख्या १४ करोड़ हैं | परमात्मा की आज्ञानुसार १४ करोड़ के ऊपर १४ दिवान अर्थात १४ आज्ञा देने वाले सेनापति हैं | १ करोड़ के ऊपर एक सेनापति होता हैं जो करनी अनुसार नाना प्रकार के दण्ड देने की आज्ञा देता हैं | जहाँ ८४ कुंड रक्त से भरे हुए हैं जिनको कुम्भी नरक कहा जाता हैं | यमलोक का मुख्य द्वार भी काले वर्ण का है जिसको देखते ही प्राणी भयभीत हो जाता हैं |
गरीब, सो सो योजन कुंड है, गिरद गता बहु भीर |
कोट्यो जिव उसारिये, कहिं न पावै थीर ||
कोट्यो जिव उसारिये, कहिं न पावै थीर ||
गरीब, हाथ पैर जिनके नहीं, नहीं सीस मुख द्वार |
तलछू माछू होत हैं, परै गैब की मार ||
तलछू माछू होत हैं, परै गैब की मार ||
गरीब, लघुसी बानी कहत हूँ, दीरघ कही न जाय |
जम किंकर की मार से, साईं लेत छुड़ाय ||
जम किंकर की मार से, साईं लेत छुड़ाय ||
सत्यपुरुष धाम श्री छुड़ानी धाम |
यमलोक में कुण्ड १००-१०० योजन लम्बे-चोडे है उनमे अनेक प्रकार के हिंसक जीव रहते हैं और ऊपर गिद्ध आदि हिंसक पक्षियों की भीड़ लगी रहती हैं | इनमे जो प्राणी पड़े हैं उन्हें ये हिंसक जीव खा रहे हैं | उन प्राणियों के हाथ,पैर,मुख इन हिंसक पक्षियों ने खा लिये हैं, वे कुण्डो में पड़े तडफ रहे हैं ऊपर से यमदूतो की भयानक मार पड़ रही हैं | बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब अपनी वाणी में यमलोक का हाल वर्णन करते हुये कहते है कि “यह लोक इतना दुःखदायी हैं कि कहने को वाणी संकुचाती हैं, ज्यादा कहा नही जाता, इसलिए संषेप में ही कहा हैं | यमदूतो की मार बहुत कष्टदायक है, इससे सतगुरु प्राणियों की रक्षा करे” |
गरीब, नीले जिनके होंठ हैं, काली जिनकी जीभ |
चिसमे जिनके लाल है, रक्त टपकै पीव ||
चिसमे जिनके लाल है, रक्त टपकै पीव ||
गरीब, सूर स्वान के मुख बने, धड़ तो जिनकी देह |
दस्तो जिनके गुर्ज हैं, मारे निर संदेह ||
दस्तो जिनके गुर्ज हैं, मारे निर संदेह ||
गरीब, स्याम वर्ण शंका नही, दागड दुम खलील |
उरध चुंच मुख काग का, चिसमे जिनके नील ||
उरध चुंच मुख काग का, चिसमे जिनके नील ||
यमदूतो के होठ काले और जीभ नीली हैं | आँखे ऐसी लाल है जैसे खून टपकता हो | किसी का मुख सूअर जैसा तो किसी का मुख कुते जैसा हैं | बड़ी विशाल देही हैं. उनके हाथो के नाखून गुर्जो जैसे है, जो प्राणी के कोमल शरीर को फाड़ते हैं | यमदूतो की भयानक सूरत का वर्णन करते हुए बन्दीछोड़ गरीब दास साहिब जी कहते है कि “उनका कला रंग हैं और काग जैसा मुख हैं, नुकीली चोंच लगी हैं. जंगली हिंसक जीव जैसी पूंछ हैं और लाल आँखे हैं. देखते ही प्राणी की आत्मा कांप जाती हैं” |
गरीब, शक्ति सरुपी तन धरै, लघु दीरघ हो जाहिं |
बाहर भीतर मार हैं, तन कूं बहु विधि खाहिं ||
बाहर भीतर मार हैं, तन कूं बहु विधि खाहिं ||
गरीब, कोटि-कोटि की जोट हैं, कोटि-कोटि एक संग |
एका-एकी फिरत है, ऐसे भयंकर अंग ||
एका-एकी फिरत है, ऐसे भयंकर अंग ||
यमदूतो के शरीर बड़े शक्तिशाली हैं | वह अपनी इच्छानुसार अपने शरीर के आकार को छोटा-बड़ा बना लेते हैं | प्राणी के कोमल शरीर को बाहर-भीतर से कष्ट देते हैं | शरीर को बहुत प्रकार से नोचते हैं | यमदूतो के १-१ करोड़ के झुण्ड हैं इक्टठे प्राणी पर आक्रमण करते है | उनके सभी अंग भयानक हैं | यमलोक में यमदूतो की सेना एका-एक [कभी भी] कहीं भी पहुंच कर आक्रमण करती हैं |
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