बंदीछोड़ गरीब दास साहिब जी अपनी पावन पवित्र कल्याणकारी अमृतमयी वाणी में फरमाते है कि:-
गरीब, अठसठ तीर्थ जाइये, मेले बड़ा मिलाप।
पत्थर पानी पूजते, कोई साधु संत मिल जात।।
सतगुरु जी की यह लीला सन 1743 की कार्तिक मास की पूर्णिमा की है । आज से ठीक 274 वर्ष पूर्व की । एक बार की बात है कि छुड़ानी धाम से बहुत लोग गढ़ मुक्तेश्वर गंगा स्नान के लिए जा रहे थे | तब बंदीछोड़ गरीब दास साहिब जी की माताश्री रानी जी भी कहने लगी कि “बेटा गरीबा मुझे भी गंगा स्नान के लिए ले चल”| महाराज जी ने ऐसे ही 2-3 दिन आना-कानी करते हुए निकाल दिये | तब माता जी ने फिर कहा कि “बेटा मुझे
गंगा स्नान किये कई साल हो गये है, क्योंकि साल भर में यह कार्तिक
पूर्णिमा का स्नान महान पुण्य दायक होता है और बड़े ही पुण्य से प्राप्त होता है, और हमारे देश में गंगा स्नान का बहुत महत्व है, इस माह में तो प्रति-दिन गंगा स्नान करना चहिये | यदि कोई पुरे कार्तिक मास गंगा स्नान न कर पाये तो उसे आखिरी के ५ दिन (एकादसी से पूर्णिमा) तक गंगा स्नान करना चहिये | यदि यह भी न हो पाए तो उसे पूर्णिमा के दिन तो जरुर से भी जरुर गंगा स्नान करना चहिये | इससे पुरे माह के गंगा स्नान का फल मिल जाता है | हमारे गाँव से कितने लोग गए पर न तू मेरे साथ चला और न मुझे जाने दिया ” |
पूर्णिमा का स्नान महान पुण्य दायक होता है और बड़े ही पुण्य से प्राप्त होता है, और हमारे देश में गंगा स्नान का बहुत महत्व है, इस माह में तो प्रति-दिन गंगा स्नान करना चहिये | यदि कोई पुरे कार्तिक मास गंगा स्नान न कर पाये तो उसे आखिरी के ५ दिन (एकादसी से पूर्णिमा) तक गंगा स्नान करना चहिये | यदि यह भी न हो पाए तो उसे पूर्णिमा के दिन तो जरुर से भी जरुर गंगा स्नान करना चहिये | इससे पुरे माह के गंगा स्नान का फल मिल जाता है | हमारे गाँव से कितने लोग गए पर न तू मेरे साथ चला और न मुझे जाने दिया ” |
महाराज जी ने कहा कि “माता जी मै आपको जरुर गंगा स्नान कराऊंगा” | तब माता ने कहा कि “बेटा कैसे? अब तो हम गंगा जी पर भी नहीं पहुँच सकते है तब तुम किस प्रकार मुझे गंगा स्नान कराओगे अब तो समय पर घाट पर पहुँचना असम्भव है” | महाराज जी ने माता जी को बहुत विश्वास दिलाना चाहा पर विश्वास होता कैसे? यह बात कह कर महाराज जी श्री छुड़ानी धाम से पश्चिम दिशा की ओर चल दिए (तालाब की तरफ) जिसे अब गंगा मैया के नाम से भी जाना जाता है | तालाब के किनारे बैठ कर महाराज जी ने गंगा मैया का आह्वान किया और कुछ ही पलों में वँहा गंगा मैया की निर्मल धरा बहने लगी | अपनी इस आलोकिक लीला को रच कर सत्पुरुष सतगुरु गरीब दास जी महाराज दौड़ते हुए अपनी माता जी के पास आये और माताजी से कहने लगे कि “माता जी चलो गंगा स्नान कर लो गंगा मैया आ गई है यंही अपने छुड़ानी गाँव में” | माता जी ने कहा कि “बेटा गंगा जी तो गढ़ मुक्तेश्वर में है वह यहाँ कैसे आ सकती है” | यह बात पुरे छुड़ानी धाम में आग की तरह फैल गई कि “गाँव में गंगा मैया प्रकट हुई है, पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था, कि “गंगा मैया छुड़ानी गाँव में आ गई है” | तब महाराज ने सोचा कि “यदि इन सभी को यहाँ स्नान करा भी दिया तो इनको विस्वास नहीं होगा की इन्होने गंगा मैया में ही स्नान किया है |इसलिए इनको यहाँ गढ़ मुक्तेश्वर ही प्रतीत करना होगा” |
तब महाराज जी ने कहा कि “सब अपनी आँखे बंद कर लो” | महाराज जी के कहे अनुसार सभी ने अपनी आँखे बंद कर ली | कुछ देर बाद आँखे खोली तो देखा कि “गंगा जी की विशाल धारा बह रही थी, और वंही गढ़ मुक्तेश्वर दिखाई देने लगा, वही विशाल धरा, भक्तो का स्नान के लिए ताँता, विशाल मेला | इसके बाद सभी ने गंगा स्नान किया, स्नान की तृप्ति के बाद महाराज जी ने पुन: सबको आँखे बंद करने के लिए कहा और बाद में जब आँखे खोली तो देखा कि “सब वापिस अपनी जगह छुड़ानी धाम में थे” | वास्तव में तो पहले भी सभी छुड़ानी धाम में ही थे | परन्तु बन्दीछोड़ सतगुरु गरीब दास जी महाराज जी ने अपनी लीला से पहले तो गंगा मैया को छुड़ानी धाम में प्रकट किया और फिर छुड़ानी धाम में ही गढ़ मुक्तेश्वर के द्रश्य की लीला रची | फिर सभी सोचने लगे कि “क्या हमने सच में गंगा स्नान किया है? या कोई सपना देख रहे थे?” | उन लोगों की यह बात सोचना भी उचित था क्युकी इतनी जल्दी गढ़ मुक्तेश्वर जाकर स्नान करके वापिस आना मुमकिन नहीं है यह तो सिर्फ जगत गुरु बाबा गरीब दास जी महाराज जी की आलोकिक लीला के कारण ही संभव हो सका था |
गरीब राम कह्या तो क्या हुआ, उर में नहीं यकीन | चोर मुसे घर लूट हीं, पांच पचीसौं तीन ||
गरीब एक राम कहंते राम है, जिन के दिल हैं एक | बाहर भीतर रमि रह्या, पूर्ण ब्रह्म अलेख ||
गरीब राम नाम निज सार है, मूल मंत्र मन मांहि | पिंड ब्रह्मण्ड से रहित है, जननी जाया नांहि ||
गरीब राम रटत नहीं ढील करि, हरदम नाम उच्चार | अमी महा रस पीजिये, यौह तत्त बारंबार ||
तब कुछ लोगो ने कहा कि “इसमे सोचने की क्या बात है, इतनी बड़ी धारा गंगा जी की ही बह रही थी, इतना बड़ा मेला लगा था, यदि इतनी जल्दी हम वापिस आये है, तो ये सब उन्ही महापुरुष योगेश्वर जी की शक्ति का प्रभाव है” | इतने में ही एक सेवक आया और कहने लगा कि “महाराज जी मै अपनी धोती गंगा जी पर ही भुल आया हूँ” | तब महाराज जी ने कहा कि “तालाब पर पहुँच जाओ, तुम्हारी धोती किनारे पर ही पड़ी हुई है” | यह सुनकर सब लोगो को आश्चर्य हुआ कि “स्नान तो मुक्तेश्वर में किया था और धोती यहाँ छुडानी धाम कैसे आई” | जब उस सेवक के साथ सभी ने जाकर देखा तो महाराज जी की कही हुई बातों के अनुसार उस सेवक धोती किनारे पर पड़ी हुई थी | यह देखकर सबको विश्वास हो गया कि “उन्होंने वास्तव में ही गंगा स्नान किया है” | महाराज जी ने अपनी लीला से ३ बार श्री छुडानी धाम में गंगा जी को प्रकट कराया था|
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