Thursday, January 11, 2018

सर्व लक्षणा ग्रन्थ

बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब ने अपने वाणी ग्रन्थ में सर्व लक्षणा ग्रन्थ नामक शीर्षक से विशेष उपदेश की रचना की है। इसमें बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब ने मनुश्य के उत्तम लक्षणों का विवरण देते हुए कुछ शिक्षाप्रद साखियां में कही हैं, जो कि ज्ञान, वैराग से भरपूर हैं। जिस जीव पर ईष्वर दया करे, उसे उत्तम लक्षण प्राप्त होते हैं। गरीबदास साहिब ने अपने अमूल्य वचन इस ग्रन्थ में कहे हैं. 
उत्तम कुल कर्तार दे, द्वादस भूषण संग। रूप द्रव्य दे दया कर, ज्ञान भजन सत्संग।। 
गरीबदास साहिब कहते हैं कि जिस जीव पर ईष्वर कृपा करे, उसका, उत्तम कुल अर्थात सत्संगी परिवार में जन्म होता है, धन पदार्थ की भी कमी नहीं होती। धर्म से सम्बन्ध
रखने वाले बारह आभूषण से सुषोभित उसका रूप बहुत सुन्दर होता है, जैसे कि ईष्वर का ज्ञान होता है, भजन मे मन स्थिर होता है और सत्संग उसे अतिप्रिय लगता है। 

सील सन्तोश विवेक दे, छिमा दया इकतार। भाव भक्ति वैराग दे, नाम निरालंभ सार ।।
 उसका ईष्वर की दया से शील स्वभाव होता है, जो ईष्वर ने दिया उसी में सन्तोश रखता ह फिर उसे विवेक होता है, अर्थात अच्छे बुरे का निर्णय जानता है। ईष्वर की दया से उसका हहृय अति कोमल होता ह, दूसरों के कहे हुए कटुवचन सहने की षक्ति उसे प्राप्त होती है। ईष्वर की दया से उसका गुरू भक्ति में दृढ़ निष्चय, संसार से वैराग्य और ईष्वर के नाम में विष्वास होता है। 

जोग जुगति जगदीष दे, सूक्ष्म ध्यान दयाल। अकल अकीन अजनम जत, अठसिधि नौ निधि ख्याल।। 
ईष्वर की दया से उसे ध्यान मार्ग की युक्ति भी ज्ञात होती है। आठ सिधि, नौनिधि, यह सब झूठा ही ख्याल है, एक ईष्वर ही सर्व सुखों का दाता होता है, ऐसा समझकर जो जन्म-मरण से रहित ईष्वर है, उसी में उसका विष्वास होता है। 

स्वर्ग नरक बांचै नहीं, मोक्ष बन्धन से दूर। बड़ी गरीबी जगत में, संत चरन रज धूर।।
 गरीबदास साहिब कहते हैं कि मनुश्य स्वर्ग नरक के सुख दुख को तुच्छ समझे, यहा तक कि न मोक्ष की इच्छा रखें, न बन्धन का भय माने। साधु-जनों की चरण रज को ही सर्व सुखों का मूल समझे। यह एक उत्तम लक्षण है।

 जीवन मुक्ता सो कहो, आषा तृश्णा खण्ड। मन के जीते जीत है, क्यूं भरमें ब्रह्मण्ड।। गरीबदास साहिब कहते हैं कि सारे ब्रह्माण्ड में भ्रमण करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसकी इस संसार में आषा तृश्णा मिट गई, जिसने अपने मन को विकारों से हटाकर सतगुरू के चरणां में लगा दिया है, वो इस संसार में शरीर करके रहता हुआ भी मुक्ति स्वरूप ळें 

शाला कर्म शरीर में, सतगुरू दिया लखाय। गरीबदास गलतान पद, नहीं आवैं नहीं जाय ।।6।।
 सत्गुरू गरीबदास महाराज जी कहते हैं कि सत्गुरू देव जी ने हमें इस शरीर में ही शुभ कर्म करने की युक्ति बता दी है। हम उस युक्ति से उस पद में सवाविष्ट हो गए हैं जहा न कभी आना होता है न कभी जाना होता है अर्थात् हमारा आवागमन का चक्कर समाप्त हो गया है।

 चैरासी की चाल क्या, मो सेती सुनि लेह। चोरी जारी करत हैं, जाके मौंहडे खेह ।।7।। जिन कामों से प्राणी चैरासी के चक्कर में फूस जाता है उसे मुझसे सुनो। चोरी और यारी करने वाले के मूह में धूलि ही पड़ती है। 

काम लोध मद लोभ लट, छूट रहै विकराल। लोध कसाई उर बसै, कुशब्द छुरा घर घाल ।।8।। 
ऐसे बुरे काम करने वाले प्राणी के मन में काम, लोध, लोभ और अहंकार विकराल रूप धारण करके रहते हैं। लोध रूपी कसाई उसके हहृय में हमेशा रहता है जिस कारण वह प्राणी बुरे वचन रूपी छूरे से सबको घायल करता रहता है। 

हर्ष शोक हैं श्वान गति, संसा सर्प शरीर। राग द्वेष बड़ रोग हैं, जम के परे जंजीर ।।9।। हर्ष और शोक कुत्ते जैसे व्रती है! मन में संशय साँप की तरह है। राग, द्वेष बड़े भयानक रोग हैं जिनके कारण प्राणी यमों की जंजीर में बंध जाता है।

 आशा तृष्णा नदी में, डूबे तीनौं लोक। मनसा माया बिस्तरी, आत्म आत्म दोष ।।10।। आशा और तृष्णा रूपी नदी में तीनों लोकों के प्राणी डूब गए हैं। मनसा और माया का संसार में विस्तार है। इन दुर्गुणों के कारण आत्मा पर मैल चढ़ गई है।

 एक शत्रु एक मित्र हैं, भूल पड़ी रे प्राण। जम की नगरी जाहिगा, शब्द हमारा मान ।।11।। 
सत्गुरू गरीबदास महाराज जी कहते हैं कि हे प्राणी! तू संसार में किसी को दुश्मन समझता है और किसी को दोस्त समझता है। यह तेरे मन की भूल है जबकि सब जीव उस प्रभु की आत्माएं हैं। यह हमारा शब्द ध्यानपूर्वक सुन। इस भूल के कारण तुझे यमों की नगरी में जाना पड़ेगा।

 निंद्या बिंद्या छाडि दे, संतों सूं कर प्रीत। भवसागर तिर जात है, जीवत मुक्ति अतीत ।।12।। 
हे प्राणी! तू इस संसार में किसी की निन्दा, किसी की स्तुति करना छोड़ दे। सत्यवादी संतों से प्रेम कर। ऐसा करता हुआ तू भवसागर को पार कर जाएगा और मुक्त हो जाएगा।

 जे तेरे उपजै नहीं, तो शब्द साखि सुनि लेह। साक्षीभूत संगीत है, जासे लावो नेह ।।13।।
हे प्राणी! यदि तुझे अपने आप से कुछ समझ नहीं लगती तो तू हमारी शब्द वाणी सुनकर ही उस पर अमल कर ले। जो प्रभु हाज़िर.नाज़िर और सदैव तेरे अंग.संग है। उसके चरण कमलों से प्रेम कर।

 स्वर्ग सात असमान पर, भटकत है मन मूढ़। खालिक तो खोया नहीं, इसी महल में ढूंढ़ ।।14।।
 प्राणी का मूर्ख मन समस्त सृष्टि में भटकता फिरता है। सात.स्वर्गों तक उड़ान भरकर प्रभु तक पहुूचने की कोशिश करता है। लेकिन वह मालिक कहीं खोया हुआ नहीं है जिसे दूर जाकर खोजना पड़े। वह तो इसी शरीर के भीतर बसता है। हे प्राणी! तू इसी शरीर में युक्ति से उसकी खोज कर। 

कर्म भ्रम भारी लगे, संसा सूल बबूल। डाली पांनौं डोलते, परसत नांही मूल ।।15।। 
यह जीव विभिन्न कर्मो, भ्रमों में उलझ रहा है। इसके मन में जो संशय, भ्रम है वे बबूल के काूटों की तरह चुभ कर इसे दुःख दे रहे हैं। उसका कारण यही है कि प्राणी पेड़ को पालने के लि, जड़ों में पानी सींचने की जगह पत्तों और शाखाओं को पानी देता है। अर्थात् जो समस्त संसार का एक मालिक है, उसकी भक्ति को छोड़कर अन्य विभिन्न प्रकार के कर्म.काण्डों में लगा हुआ है। सृष्टि के मूल, प्रभु को भूल गया है।

 श्वासा ही में सार पद, पद में श्वासा सार। दम देही का खोज कर, आवागवन निवार ।।16।।
 सत्गुरू गरीबदास साहिब जी इस जन्म को सफल करने का मार्ग बता रहे हैं कि जो शरीर के अन्दर श्वास है इस श्वास के भीतर ही प्राणी की जीवात्मा और परमात्मा समाए हुए हैं अर्थात् श्वास में ही सार भरा हुआ है और उस सार प्रभु के भीतर ही श्वास समाया हुआ है। इस कारण इस शरीर के भीतर जो श्वास चल रहा है, इस श्वास की जो गुरू मुख से बताए मुताबिक खोज करता है उसका संसार में से जन्म.मरण का दुःख मिट जाता है इसलिए सत्गुरू जी की आज्ञा है कि अपना जन्म.मरण काटने हेतु शरीर में श्वास की खोज करो। जिससे आवागमन समाप्त हो जाएगा। 

बिन सतगुरू पावै नहीं, खालिक खोज विचार। चैरासी जग जात है, चीन्हत नांहीं सार ।।17।।
 उस खालिक को खोज और विचार से पाने हेतु सत्गुरू की शरण लेनी पड़ती है। बिना सत्गुरू के उस मालिक की खोज नहीं होती। इस कारण बिना सत्गुरू के सार तत्व के साथ न मिलने के कारण संसार चैरासी लाख के चक्कर में जा रहा है।

 मरद गर्द में मिल गये, रावण से रणधीर। कंस केश चाणूर से, हिरणाकुश बलबीर ।।18।।
 हे प्राणी! इस संसार में बहुत बड़ी ताकत रखने वाले रावण जैसे शूरवीर, हिरणाकुश जैसे बलशाली, राजा कंस, केशी दैत्य और चाणूर जैसे महाबली आखिर मृत्यु हो जाने पर मिट्टी में मिल गए।

 तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धर लेत। गरीबदास हरि नाम बिन, खाली परसी खेत ।।19।।
 इसलिए सत्गुरू गरीबदास महाराज जी के वचन हैं कि प्राणी! तेरी क्या औकात है जो तू अपनी ताकत का अहंकार करता है। यह तेरी ताकत साहिब के दरबार में किसी काम की नहीं है। प्रभु की आज्ञा के बिना तू अपनी मर्जी से इन्सान का जन्म नहीं ले सकता। इसलिए प्रभु का नाम सुमिरन कर और नम्रता धारण कर। जिस तरह बीज के बिना खेत खाली होता है इसी तरह प्राणी संसार में प्रभु के सुमिरन के बिना खाली रह जाता है।

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