Thursday, January 11, 2018

सातों बार की रमैंणी

सातों बार समूल बखानों। पहर घड़ी पल ज्योतिष जानों ।।1।। 
 बंदीछोड़ गरीबदास महाराज जी कहते हैं कि हम सात दिनों का मूल सहित वर्णन करते हैं। जिसमें पहर, घड़ी और पलों को समझाया गया है।

 जिसे ज्योतिष शास्त्र भी कहा जाता है। सत्गुरू देव जी के अवतार के समय, टाईम को जानने हेतु पलक घड़ी और पहर थे। आजकल सैकिण्ड, मिनट और घण्टे चलते हैं।

 ऐतबार अंतर नहीं कोई। लगी चांचरी पद में सोई ।।2।। 
रविवार का दिन तब ही सफल है यदि प्राणी का ध्यान प्रभु के चरणों में लगा रहे। उसमें कोई विघ्न न आए। चांचरी मुद्रा के माध्यम से सुर्ति प्रभु के चरणों में लगी रहे।

सोम संभाल करो दिन राती। दूर करो नैं दिल की काती ।।3।। 
सोमवार के दिन अपने श्वासों की दिन.रात संभाल करते हुए प्रभु के चरणों में अपनी सुर्ति को लीन करो। अपने दिल में से राग.द्वेष ईष्र्या आदि भावनाओं को दूर करो।

मंगल मन की माला फेरो। चैदह कोटि जीत जम जेरो ।।4।। 
मंगलवार के दिन, मन की माला अर्थात् मन को प्रेरित कर साहिब प्रभु के सुमिरन में लगाओ। इस तरह सुमिरन करने से यमराज के चैदह करोड़ यमदूत अपने अधीन करके मुक्ति प्राप्त करो।

 बुध बिनानी विद्या दीजै। सतसुकृत निज सुमरण कीजै ।।5।। 
बुधवार के दिन प्रभु से ब्रह्म विद्या मांगो अर्थात् प्रभु के आगे प्रार्थना करो कि मेरे हहृय में आपका ज्ञान हो जाए। इस तरह प्रार्थना करते हुए उस सत्यस्वरूप प्रभु का ध्यान करो।

 बृहस्पति भ्यास भये बैरागा। तातें मन राते अनरागा ।।6।।
 गुरूवार के दिन वैराग्य सहित प्रभु के सिमरन का अभ्यास करो। जिसके कारण मन में प्रभु के स्वरूप का प्यार जाग उठे।

शुक्र शाला कर्म बताया। जदि मन मानसरोवर न्हाया ।।7।। 
शुक्रवार का दिन शुभ कर्म करने का संकेत करता है। जिस समय मन प्रभु के चरण.कमलों के ध्यान रूपी मानसरोवर में नहाता हैए वही उसका शुभ कर्म है।

 शनैश्चर श्वासा मांहि समोया। जब हम मकृतार मग जोया ।।8।। 
सत्गुरू जी कहते हैं कि शनिवार के दिन जब हमने श्वासों में अपनी सुर्ति लीन करीए उस समय जिस तरह मकड़ी तार के द्वारा उपर को चढ़ती है उसी तरह सुरति की लगन पर चढ़कर हमनें प्रभु का मार्ग देख लिया।

 राहु केतु रोके नहीं घाटा। सतगुरू खोल्हे बजर कपाटा ।।9।।
 जो प्राणी इस तरह प्रेम और वैराग्य सहित साहिब प्रभु के चरणों में ध्यान लगाता है उसका मार्ग फिर राहू.केतु भी नहीं रोकते। सत्गुरू जी उसके लिए ब्रह्म लोक के द्वार खोल देते हैं।

नौ ग्रह नवन करै निरबाना। अविगत नाम निरालंब जाना ।।10।।
 जो प्राणी अविगत पुरूष, निरालम्ब,निराश्रय, प्रभु का नाम सिमरन करता है उसे नौ प्रकार के ग्रह नमस्कार करते हैं और उसे कोई दुःख नहीं देते।

नौ ग्रह नाद समोये नासा। सहंस कंवल दल कीन्हा बासा ।।11।।
 जिस साधक ने ध्यान के द्वारा सहंस कंवल में मन को स्थिर कर लिया हैए वहां बज रहे अनहद नाद में जब आत्मा लीन हो जाती है तो नव ग्रह उसके लिए समाप्त हो जाते हैं।

दिशा सूल दहूं दिश का खोया। निरालंब निरभै पद जोया ।।12।। 
जो साधक निरालम्ब और निर्भय पद को प्राप्त हो गया अर्थात् साहिब प्रभु के ध्यान में लीन हो गया उस प्राणी के लिए समस्त दिशाओं का दिशाशूल समाप्त हो जाता है वह किसी भी दिशा में जब चाहे जा सकता है। उसके लिए समस्त दिशाएं अनुकूल होती हैं।

कठिन विषम गति रहनि हमारी। कोई न जानत है नर नारी ।।13।। 
सत्गुरू गरीबदास महाराज जी कहते हैं कि हमारी गति और रहन.सहन का भेद अति कठिन है। कोई भी नर.नारी हमारी गति को नहीं जान सकता।

 चंद्र समूल चिंतामणि पाया। गरीबदास पद पदह समाया ।।14।। 
सत्गुरू गरीबदास महाराज जी कहते हैं कि हम समस्त चिंताओं को दूर करने वाली चिन्तामणी रूपीए पारब्रह्म परमात्म तत्व रूपी चंद्रमा के पद को प्राप्त करके उसमें लीन हो गए हैं। जो प्रभु सब जगह समाया हुआ है।

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