प्रत्येक शुभ कार्य को प्रारम्भ करते समय बन्दीछोड़ गरीबदास साहिब जी की वाणी में से मंगलाचरण उच्चारण करना चाहिए। इसके उच्चारण करने से
प्रत्येक शुभ कार्य खुशी-भरपूर पूर्ण होता है।
गरीब, नमो नमो सत्पुरूष कूँ, नमस्कार गुरू कीन्ह ही ।
सुर नर मुनि जन साधवा, संतों सरबस दीन्ह हीं ।1।
सतगुरू देव गरीबदास महाराज जी सर्वप्रथम
सत्यपुरूष साहिब को पुनः-पुनः नमन करते हैं। फिर गुरू देव को नमस्कार करते हैं।
मनुष्य, देवता, मननशील साधक, साधु जन सबके प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करते हैं।
सतगुरू साहिब संत सब, डण्डौतम् प्रणाम ।
आगे पीछे मध्य हुये, तिन कूं जां कुरबान ।2।
सतगुरू, साहिब और सत्यवादी सन्तजनों को दण्डवत्
प्रणाम है, जो पूर्व में हो चुके हैं, जो भविष्य में होंगे और जो अब वर्तमान
में मौजूद हैं, उनसे मैं कुर्बान जाता हूं।
निराकार निरबिषं, काल जाल भय भंजनं ।
निरलेपं निज निरगुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनि ।3।
पारब्रह्म प्रभु जो आकार रहित है, विषयों से रहित है, उसका ध्यान करने से काल-जाल का भय समाप्त होता है। उस प्रभु को विश्व का कोई
लेपन नहीं चढ़ता। वह प्रभु स्वयं के स्वरूप में स्थित रहता है। वह तीनों गुणों (सत्गुण, रजोगुण एवं तमगुण) से परे हैं। संसार की कल्पना और उपमा से रहित हैं। वह अभाव रहित और शब्द रूप
ब्रह्म हैं।
सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै ।
उज्जल हिरम्बर हरदमं, बेपरवाह अथाह है, वार पार नही मध्यतं ।4।
ऐसे प्रभु के ध्यान में अपनी सुर्ति को लीन करो
क्योंकि जो पारब्रह्म प्रभु है वही प्राणी की अन्तरात्मा है, वह प्रभु सर्व व्यापक है। उसके ध्यान में अपनी सुर्ति-निरत को लीन करो। वह
निर्मल, सोने की तरह प्रकाशमान, हर समय एक ही अवस्था में रहता है। वह बेपरवाह है। उसकी महिमा का कोई आदि, मध्य अथवा अन्त नहीं पाया जा सकता।
गरीब, जो सुमरत सिद्धि होई, गण नायक गलताना।
करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना ।5।
ऐसे प्रभु का सिमरन करने से समस्त कार्य सि
होते हैं। वह प्रभु सब का मालिक है और सब में लीन है। पारस जैसे गुण वाले मालिक के
समक्ष कृपा-याचना करो।
आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा।
चरण कमल ल्यौ लाऊँ, आदि अंत कर हूँ सेवा ।6।
वह प्रभु सर्वप्रथम है इसलिए उसे आदि गणेश कहा
जाता है, वह सब देवों का देव और सब जीवों का मालिक है। मैं उसके चरण कमलों में ध्यान
लगाता हूं और आदि से अन्त तक (सदैव उसकी सेवा करता रहूंगा।
परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई ।
अविगत गुणह अतीतं, सत्यपुरूष निर्मोही ।7।
प्रभु परम शक्ति रूप सबके अंग-संग हैं और सब
रिद्धियों-सिद्धियों का दाता है। उस अतीत पुरूष के गुणों को कोई नहीं जान सकता।
उसे किसी के साथ मोह भी नहीं है।
जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी।
तन मन अरपूं शीशं, भक्ति मुक्ति भंडारी ।8।
वह प्रभु समस्त जगत् का मालिक और पालक है। वह
मंगल रूप है। मुर नामक दैत्य को
मारने के कारण उसका नाम मुरारी भी है। उस प्रभु को मैं अपना तन, मन, शीश अर्पण करता हूं। वह भक्ति-मुक्ति का भण्डार है।
सुरनर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा ।
शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा ।9।
उस साहिब का देवता, मनुष्य, मननशील साधक और ब्रह्मा, विष्णु, महेश ध्यान करते (पूजते हैं। शेषनाग जी हज़ारों मुखों से उस आदिगणेश की महिमा गाते हैं और उसकी
पूजा करते हैं।
इन्द्र कुबेर सरीखा, वरूण धर्मराय ध्यावैं।
समरथ जीवन जीका, मन इच्छ्या फल पावै।10।
उस प्रभु को स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र, कुबेर भण्डारी, वरूण देव, धर्मराज जैसे पूजते हैं। वह समर्थ पुरूष सबका मालिक है और सबका जीवन है। उसका
ध्यान करने से मनो-इच्छित (मनोवांछित) फल की प्राप्ति होती है।
तेतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी।
उतरैं भौ जल पारा, कटि हैं जम की फांसी ।11।
तैंतीस करोड़ देवता उसके आश्रय हैं और अट्ठासी
हज़ार ऋषि उसकी पूजा करते हैं। उसका स्मरण करने वाले संसार सागर को पार कर लेते हैं
और यमों की फांसी से उनका छुटकारा हो जाता है।
पारब्रह्म प्रभु जो आकार रहित है
ReplyDeletesame meaning
कर नैनों दीदार महल में प्यारा है।
DeleteSatsahib
ReplyDeleteSat Saheb Bhagat Ji
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